Diwal 2018- इस वजह से मनाई जाती है दिवाली, बादशाह जहांगीर के साथ सिख धर्म की है महत्वपूर्ण कहानी

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नेशनल डेस्क ।। दिवाली का पर्व देशभर में मनाया जाता है। दीपोत्सव का पर्व आज और कल धूमधाम से मनाया जाएगा। लेकिन इस त्योहार को मनाने के लिए कई कहानियां प्रचलित है। वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने दीपावली पर्व के धार्मिक महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि दीपावली पर्व पर दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या पौराणिक मान्यताएं हैं।

राम भक्तों के अनुसार दिवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। इसलिए इस याद में लोग आज भी लोग यह पर्व मनाते हैं। श्रीकृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए।

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एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार श्री विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था। तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है।

सिखों के लिए भी दिवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 ई. में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था और इसके अलावा 1619 ई. में दिवाली के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है। पंजाब में जन्में स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ।

महर्षि दयानन्द ने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय ‘ओम’ कहते हुए समाधि ले ली थी। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया था।

वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊंचे बांस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था।

बादशाह जहांगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे।शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था और लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।

फोटो- फाइल

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