इस टेक्नीक से मृत्यु के बाद भी जीवित हो जायेगा इनसान, 350 लोगों ने कराया रजिस्ट्रेशन

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डेस्क.मृत्यु जीवन का एक सारभौमिक सत्य है। कोई भी इंसान मरना नहीं चाहता। सबको एक न एक दिन इस संसार को अलविदा कहना पड़ता है। लेकिन अब एक ऐसी तकनीक पर काम हो रहा है, जिसकी सफलता के बाद इंसान की मृत्यु के वर्षों बाद भी उसे दोबारा से जिंदा किया जा सकेगा और यदि ऐसा होता है तो आप वर्षों पहले मर चुके अपने अजीज को दोबारा से जिंदा करवा सकते हैं। हालांकि अभी इस तकनीक की रिसर्च के लिये अमेरिका के 350 लोगों ने मृत्यु के बाद अपना शरीर सौंपना का करार किया है। इन लोगों पर मेडिकल साइंस(Medical science) की इस तकनीक का प्रयोग किया जायेगा। इस तकनीक को क्रायोनिक्‍स टेक्‍नोलॉजी(Cryonics technology) का नाम दिया गया है।इंसान की मृत्यु के बाद फिर से जिंदा करने के लिये कुछ खास जतन करने होंगे। इसमें सबसे बड़ी चुनौती बॉडी को सुरक्षित रखने की होगी। बॉडी को जीरो से माइनस 150 डिग्री के तापमान में ही रखना होगा। इसमें सबसे खास बात ये होगी कि इसमें जिस इंसान के शरीर को मृत्यु के बाद संरक्षित करना है, उसे एक रजिस्‍ट्रेशन करवाना होगा।

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रजिस्‍टर्ड इंसान की मृत्यु होने के बाद उसे कंपनी की लैब में लाया जायेगा। प्रक्रिया के पहले चरण में उसकी बॉडी को आइसपैक(ice pack) की मदद से ठंडा किया जायेगा। मृत्यु के बाद बहुत तेजी से बॉडी को ठंडा कर जमाने की प्राथमिकता होगी। इससे शरीर की कोशिकायें और खास तौर पर मस्तिष्क की कोशिकायेन ऑक्सीजन की कमी से टूट कर खराब न हों।

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बॉडी को ठंडा करने के बाद बॉडी का सारा खून निकाला जायेगा। इतना ही नहीं शरीर के अंगों के बचाव के लिये उसके हिमीकरण(Freezing) की प्रक्रिया अपनायी जायेगी। खून निकालने के बाद बॉडी में धमनियों के जरिये हिमीकरण रोधी(Anti-freezing) द्रव्य डाला जायेगा। इतना करने के बाद खोपड़ी मे छोटे-छोटे छिद्र किये जाते हैं।

शरीर में जो हिमीकरण रोधी द्रव्य डाला जाता है उसे ‘क्रायो-प्रोटेक्टेंट’(Cryo-protector) केमिकल कहते हैं। जब ये केमिकल शरीर के भीतर पहुंच जाता है तो अंगों में बर्फ नहीं जमने पाती है। वहीँ अगर शरीर में बर्फ जम गयी तो कोशिकाओं की दीवार नष्ट हो जायेगी और शरीर संरक्षित(Body preserved) होने से पहले ही नष्ट हो जायेगा।

इसके बाद शव को स्लीपिंग-बैग(Sleeping bag) में रखकर कर लिक्विड नाइट्रोजन(Liquid nitrogen) में माइनस 196 टेंपरेचर(Temperature) पर सेल में रख दिया जायेगा। इस प्रक्रिया से शरीर को सौ वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

ये प्रयोग ‘हिम गिलहरी’ पर सफल हो गया है। इसके अतिरिक्त इस तकनीक का प्रयोग सफलतापूर्वक आर्कटिक-क्षेत्र की जमीनी गिलहरी के अलावा कछुये की कुछ प्रजातियों पर किया जा चुका है। वहीं हिम-क्षेत्र आर्काटिका ऊनी कंबल कीड़ा भी ‘क्रायोजेनिक’ तकनीक से वर्षों बाद फिर से जिंदा हो उठा है।

ऐसे में इस बात पर उम्मीद जता कर आगे काम किया जा रहा है कि जब इतने ही समय में ‘हिम गिलहरी’ जिन्दा हो उठी है तो फिर इंसान क्यों नहीं। हालांकि इस बात को साबित होने में भी सौ वर्षों से ज्यादा का समय लगेगा। फिलहाल अमेरिका में 150 से अधिक लोगों का ‘मृत शरीर’ तरल नाइट्रोजन से ठंडा कर रखवाया गया है। पूरी बॉडी को हिमीकरण के जरिये जमा कर सुरक्षित रखने में अनुमानतः 1,60,000 डॉलर का ख़र्च आने की सम्भावना है।

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