उत्तर प्रदेश ।। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के एक बड़े फैसले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। कोर्ट ने योगी सरकार के उस शासनादेश पर रोक लगाई है। जिसमें 17 ओबीसी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने का आदेश जारी किया गया है। यह शासनादेश 24 जून को जारी किया गया है। सामाजिक कार्यकर्ता गोरख प्रसाद ने याचिका दाखिल कर सरकार के इस शासनादेश को अवैध ठहराया गया है। जिस पर सोमवार को सुनवाई करते हुए जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस राजीव मिश्र की डिवीजन बेंच ने सुनवाई की है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस आदेश से 13 विधानसभा उप चुनाव की जोरदारी और कर रही योगी आदित्यनाथ सरकार के कदम पीछे हटे हैं। इस प्रकरण पर कोर्ट ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण से हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने गोरख प्रसाद की याचिका पर यह निर्णय लिया हैं। हाई कार्ट ने साफ कहा है कि इस तरह के मामले में केेंद्र व राज्य सरकारों को बदलाव का अधिकार नहीं हैं। सिर्फ संसद ही अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति में बदलाव कर सकती है।
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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 24 जून को शासनादेश जारी करते हुए 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का शासनादेश जारी किया है। योगी सरकार के इस फैसले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को गलत मानते हुए प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज कुमार सिंह से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने फौरी तौर पर माना कि सरकार का फैसला गलत है और सरकार को इस तरह का फैसला लेने का अधिकार नहीं है। सिर्फ संसद ही एससी-एसटी की जातियों में बदलाव कर सकती है। केंद्र व राज्य सरकारों को इसका संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं है।
सरकार ने पिछड़े वर्ग ओबीसी की 17 जातियों को अनुसूचित जातियों की लिस्ट में डाल दिया है। इनमें कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर आदि शामिल हैं। सरकार ने अपने इस फैसले के बाद जिलाधिकारियों को इन जातियों के परिवारों को प्रमाण देने का आदेश दे दिया है।