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चौधरी चरण सिंह एक ऐसे नेता जिन्हें आम लोगों का नेता कहा जाता था। उनकी सादगी और स्वभाव हर किसी का दिल जीत लेता था। किसान नेता के तौर पर मशहूर चरणसिंह प्रधानमंत्री होते हुए भी बिना सिक्योरिटी के आम लोगों के बीच पहुंच जाया करते थे। उनकी यही सादगी लोगों में उन्हें खास बनाती थी। बात सन् 1979 की है। चौधरी चरण सिंह उस वक्त देश के प्रधानमंत्री हुआ करते थे। पीएम बने कुछ ही महीने हुए थे कि इसी बीच यूपी के कई जिलों से चरणसिंह को किसानों की शिकायतें मिलने लगी।

किसानों का इल्जाम था कि पुलिस और थाने के लोग घूस लेकर उन्हें तंग कर रहे हैं। ऐसे में किसान नेता होने के चलते वह इस समस्या का हल भी खुद ही ढूंढना चाहते थे। अगस्त 1979 शाम 06:00 बजे यूपी के इटावा में मैला कुचैला धोती कुर्ता पहने एक बुजुर्ग किसान अपने बैल चोरी की शिकायत लिखवाने ऊसराहार थाने पहुंचा। इस दौरान छोटे दरोगा साहब ने पुलिसिया अंदाज में उनसे कुछ आड़े टेढ़े सवाल पूछने के बाद बिना रिपोर्ट लिखे किसान को भगा दिया। बुजुर्ग जब थाने से जाने लगा तो एक सिपाही पीछे से आवाज देते हुए बोला बाबा थोड़ा खर्चा पानी देंगे तो रपट लिखा देंगे। आखिरकार घूंस लेकर शिकायत लिखना तय हुआ।

चरण सिंह ने फिल्मी अंदाज में सिखाया सबक

पूरा माजरा लिखने के बाद मुंशी ने कहा बाबा दस्तखत करोगे या अंगूठा टेक होंगे। किसान बोला पढ़ा लिखा न हूं, अंगूठा ही टेक दूंगा। मुंशी ने कागज किसान की ओर सरकाया और स्याही वाला पैड भी बढ़ा दिया। किसान ने जेब में हाथ डालकर एक मोहर और कलम निकाली। मुंशी जब तक कुछ समझ पाता, किसान ने स्याही के पैड से मोहर पर स्याही लगाई और कागज पर ठोंक दी। मुंशी ने कागज घुमाकर पढ़ा। मुहर लगी थी। प्रधानमंत्री, भारत सरकार। मुंशी जब तक कुछ समझ पाता, किसान ने हाथ में थामे पेन से लिख दिया चरण सिंह।

यह देखकर पूरे थाने में हड़कंप मच गया। सभी समझ गए कि यह मैले कुचैले कुर्ते वाले बाबा किसान नहीं बल्कि भारत के प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह हैं। इसके बाद प्रधानमंत्री ने एक्शन लिया और पूरे के पूरे ऊसराहार थाने को सस्पेंड कर दिया। 
 

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