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आपने सभी सरदारों को लंबे लंबे बाल और दाढ़ी में देखा होगा और आपके मन में आता होगा कि सिख समुदाय के लोग अपने बाल क्यों नहीं कटवाते या दाढ़ी क्यों नहीं कटवाते? सरदार अपने केशों को काफी सलीके से रखते हैं। इसका न सिर्फ धार्मिक कारण है बल्कि साइंटिफिक रीजन भी है।

सिखों के गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा है कि सिख की पहली पहचान है उनके केश। इसके साथ ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को चार और ककार दिए थे जिसमें कंघा, कड़ा, कच्छारा और कृपाण शामिल है। गुरु जी के वचन के कारण सिखों को अपने केश को नहीं कटवाना चाहिए। इस संदर्भ में गुरु गोबिंद सिंह जी ने एक बार अपने एक भक्त को बताया था कि केश प्रकृति का अमूल्य उपहार है। जब प्रकृति ने हमें बाल दिए है तो हम इसे क्यों कटवाते हैं? जबकि किसी शरीर के अंग को तो हम नहीं कटाते।

गुरु गोबिंद सिंह जी का कहना था कि हमारी प्राचीन सभ्यता में सभी स्त्री पुरुषों को ज्यों का त्यों अपने केश को रखना चाहिए। समय के साथ कुछ लोगों ने केशों को कटवाना शुरू कर दिया और यह प्रचलन आगे बढ़ता चला गया। अब तो केवल ऋषि मुनि या कोई संत ही आपको लंबे बाल में दिखेंगे। जब प्रकृति ने हमें केश दिया है तो कुछ सोच समझकर ही दिया होगा और इसका कोई बड़ा कारण ही होगा। केश कटवाकर हम प्रकृति के नियमों का खंडन करते हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी ने केशों के महत्वता पर आगे बताया था कि केश प्रकृति ने सिर्फ सुंदरता के प्रतीक से नहीं दिए हैं। यह मनुष्य के मस्तिष्क को भी सुरक्षित रखते हैं।

दूसरी ओर अगर दाढी की बात करें तो दाढी दैवीय गुणों से भरपूर है जैसे कि दया, धैर्य, क्षमा, शांति, संतोष के प्रतीक माने जाते हैं। जबकि मूंछ वीरता और शौर्य की निशानी मानी जाती है। गुरु गोविंद सिंह जी ने बताया है कि पुरुषों को खुद को सुंदर बनाने के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं है। कृत्रिम श्रृंगार की कोई आवश्यकता नहीं है। आपने प्राचीन भारत में जरूर इस बात को देखा होगा कि ऋषि मुनि और संत लंबे केश रखते थे और अपने सर के बीच में एक जूड़ा बनाकर रखते थे। इन लंबे केशों का कारण एक यह भी था कि उनको जब वह ध्यान करते थे तो उनको एकाग्रता को पाने में बहुत आसानी होती थी। 

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