
परमात्मा से मिलना हो या इच्छा पूरी करनी हो। इसके लिए सिक्ख धर्म में जपजी साहिब का नाम लिया जाता है। जब जी साहिब एक चमत्कारी पाठ है जिसे करने से हर तरह की इच्छाएं पूर्ण होती है।
जहां सिखों में गुरुग्रंथ साहिब को अहम महत्व दिया गया है तो वही गुरुग्रंथ साहिब का पाठ करने से पहले जपजी साहिब का पाठ करना अहम माना गया है। लेकिन इस बात की जानकारी लोगों को नहीं है कि जब साहिब आखिर है क्या और क्यों इसका नाम सबसे पहले लिया जाता है।
जपजी साहिब एक सिख प्रार्थना है जो गुरुग्रंथ साहिब की शुरुआत में है। जबरी साहिब की कहानी सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव जी के जन्म साखियों से जुड़ी हुई है। इस कहानी में बताया गया है कि जब गुरु जी सुल्तानपुर में रहते थे तो वह रोजाना नजदीक वेई नदी में स्नान करने के लिए जाया करते थे और जब वह 27 साल के हो गए थे तो एक दिन प्रातः काल नदी में स्नान करने के लिए गए और तीन दिन तक नदी में समाधिस्थ रहे थे। इसी दौरान गुरु जी को ईश्वर का साक्षात्कार हुआ था।
उन पर ईश्वर की कृपा हुई थी और दिव्य अनुकंपा के प्रतीक के रूप में ईश्वर ने गुरु जी को अमृत का प्याला प्रदान किया था। उसके बाद अलौकिक अनुभव की प्रेरणा से गुरु जी पूर्ण मंत्र का उच्चारण किया जिससे जपजी साहिब का आरम्भ शुरू हुआ। जब साहिब के वर्णन के साथ गुरुग्रंथ साहिब की शुरुआत होती है, इसीलिए गुरुग्रंथ साहिब का पाठ करने के लिए जपजी साहिब का पाठ करना ही पड़ता है।
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