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हिमाचल प्रदेश का सामना तबाही से क्यों?

पिछली सदी में हिमाचल प्रदेश का औसत तापमान लगभग 1.6 °C तक बढ़ गया है। इससे न सिर्फ मौसम में बदलाव आए हैं, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता भी बढ़ी है  ।

मुख्य समस्याएं और कारण

अति-तेज़ बारिश और बादल फटने (cloudburst): बढ़े तापमान के कारण वायुमंडल अधिक नमी संभाल पा रहा है, जिससे अचानक भारी बारिश हो रही है, जो flash flood और भूस्खलन का कारण बन रही है ।

भूस्खलन और चट्टान गिरना: पहाड़ी कटाव और सड़क निर्माण से स्थिरता बिगड़ी है, और भारी बारिश इन्हें और भी तेज बना रही है ।

मानवजनित दबाव: सड़कों, सुरंगों, नदियों के किनारों पर संरचनाएं, और जल विद्युत परियोजनाओं से पहाड़ों पर असंतुलन बढ़ा है ।


परिणामस्वरूप प्रभावित क्षेत्र

आईआईटी रोपड़ ने पाया है कि हिमाचल का लगभग 45 % क्षेत्र भूस्खलन, बाढ़ और हिमस्खलन के उच्च जोखिम में है ।

राज्य सरकार की योजना के अनुसार, देरी नहीं की गई तो 2100 तक तापमान में अतिरिक्त 3–5 °C की वृद्धि हो सकती है, जिससे आपदाओं की तीव्रता और बढ़ जाएगी ।

 

समाधान: हमें अब क्या करना चाहिए?

1. योजनागत संरचना

पहाड़ों में कटाव और निर्माण पर सख्त नियंत्रण।

नदी तट से 5–7 m और नदी से 25 m की दूरी तक निर्माण पर रोक ।

मिट्टी परीक्षण और भू–तकनीकी परामर्श को अनिवार्य बनाना।

 

2. प्राकृतिक संरक्षण

पहाड़ी वन संरक्षण, पुनःवनीकरण और वृक्षारोपण को बढ़ावा देकर मिट्टी की पकड़ मजबूत करे।

जल विद्युत परियोजनाओं और सुरंग निर्माण का दृढ़ जैविक प्रभाव मूल्यांकन करे ।

 

3. सचेतनता और नियमन

भवन निर्माण और पर्यावरण नियमों का सख़्ती से पालन।

बिजली या पानी कनेक्शन तभी उपलब्ध हों जब अनुमति जारी हो ।

मानवेंद्रित विकास (जैसे पर्यटन, बस यात्राएं) को संतुलित बनाए रखना।

 

4. स्थानीय भागीदारी

पहाड़ी समुदायों की आवाज सुनना और योजनाएं उनके सुझावों के अनुसार बनानी चाहिए ।
 

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