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Up Kiran, Digital Desk: कर्नाटक के कोप्पल जिले के गंगावती तालुक के गांवों में इतिहास का एक ऐसा पन्ना खुला है, जिसने सबको हैरान कर दिया है। यहां 15वीं और 16वीं शताब्दी के कई ऐसे शिलालेख (पत्थरों पर लिखे लेख) मिले हैं, जो उस समय के जैन और हिंदू (शैव) धर्म के गहरे संबंधों की कहानी बताते हैं।

यह महत्वपूर्ण खोज कन्नड़ भाषा के एक लेक्चरर डॉ. शरणबसप्पा कोलकर ने की है, जिन्होंने कराडीकल्ला, म्यादरादोड्डी, मल्लिकार्जुन गुड्डा और कलकेरे जैसे गांवों में इन ऐतिहासिक सबूतों को ढूंढ़ निकाला है।

क्या मिला है इन शिलालेखों में?

इन शिलालेखों से यह पता चलता है कि यह इलाका कभी जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र था, लेकिन धीरे-धीरे यहां वीरशैव मत का प्रभाव बढ़ता गया।

कलकेरे गांव में जैन धर्म के सबूत: यहां एक जैन बसदी (मंदिर) के खंडहरों के पास 15वीं सदी का विजयनगर काल का एक शिलालेख मिला है। इसमें पार्श्वनाथ बसदी को जमीन दान में देने का जिक्र है, जो साफ बताता है कि उस समय यहां जैन धर्म काफी प्रचलित था।

कराडीकल्ला गांव में शैव धर्म का प्रभाव: यहां के कालीनाथ मंदिर की दीवारों पर 16वीं सदी के दो कन्नड़ शिलालेख मिले हैं। इनमें से एक में भैरनायक नाम के व्यक्ति द्वारा कालीनाथ मंदिर के शिखर के निर्माण का उल्लेख है। इसमें कालीनाथ, मल्लिकार्जुन और संगमनाथ जैसे शैव देवताओं के नाम हैं।

अन्य गांवों में भी मिले निशान: इसी तरह, म्यादरादोड्डी और मल्लिकार्जुन गुड्डा में भी पुराने शिलालेख मिले हैं, हालांकि वे काफी घिस चुके हैं।

डॉ. कोलकर का कहना है कि यह खोज इस क्षेत्र के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास को समझने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इससे पता चलता है कि कैसे समय के साथ एक धार्मिक परंपरा की जगह दूसरी परंपरा ने ले ली।