
Up Kiran, Digital Desk: ऑनलाइन गेमिंग, कसीनो और घुड़दौड़ पर लगाए गए 28% GST को लेकर चल रहे कानूनी घमासान में अब एक नया और बड़ा मोड़ आ गया है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और यह मांग की है कि देश के अलग-अलग हाईकोर्ट में चल रहे सभी मामलों को एक साथ सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया जाए.
सरकार का कहना है कि एक ही मुद्दे पर अलग-अलग अदालतों में सुनवाई होने से विरोधाभासी (contradictory) फैसले आ सकते हैं, जिससे देश भर में भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है.
क्या है पूरा मामला: पिछले साल, जीएसटी काउंसिल ने फैसला किया था कि ऑनलाइन गेमिंग, कसीनो और हॉर्स रेसिंग में लगाई जाने वाली पूरी रकम (फुल फेस वैल्यू) पर 28% टैक्स वसूला जाएगा. यानी, अगर कोई खिलाड़ी 100 रुपये की बाजी लगाता है, तो उस पर 28 रुपये का जीएसटी लगेगा, चाहे वह जीते या हारे.
इस फैसले का ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों ने कड़ा विरोध किया. उनका तर्क है कि यह टैक्स बहुत ज़्यादा है और यह उनके बिजनेस को खत्म कर देगा. इसी फैसले को चुनौती देते हुए कई गेमिंग कंपनियों ने बॉम्बे, सिक्किम, और पश्चिम बंगाल समेत कई हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं.
सरकार ने क्यों उठाया यह कदम?
केंद्र सरकार चाहती है कि इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर देश की सर्वोच्च अदालत एक ही बार में सुनवाई करके एक अंतिम और सर्वमान्य फैसला दे, जो पूरे देश पर लागू हो.
एक समान फैसला: इससे अलग-अलग हाईकोर्ट से अलग-अलग फैसले आने का खतरा टल जाएगा.
कानूनी स्पष्टता: गेमिंग इंडस्ट्री और सरकार, दोनों को इस टैक्स को लेकर कानूनी स्पष्टता मिल जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस ट्रांसफर याचिका पर नोटिस जारी कर दिया है और इसे पहले से चल रहे इसी तरह के अन्य मामलों के साथ जोड़ दिया है.
सरकार ने हमेशा यह तर्क दिया है कि इस भारी टैक्स का मकसद सिर्फ राजस्व कमाना नहीं है, बल्कि ऑनलाइन गेमिंग की लत को रोकना और इससे जुड़े सामाजिक खतरों को कम करना भी है. अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं, जिसका फैसला भारत में ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री का भविष्य तय करेगा.
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