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Up Kiran, Digital Desk: बांग्लादेश में 2024 के चर्चित छात्र आंदोलन के बाद मोहम्मद यूनुस द्वारा स्थापित अस्थायी प्रशासन को हिंदुओं पर हमलों और कट्टरता के बढ़ते प्रभाव के लिए दोषी ठहराया जा रहा है। शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद राजनीतिक माहौल में उग्रवादी नेताओं को विस्तार का पर्याप्त अवसर मिला। विशेषज्ञों के अनुसार यूनुस अकेले नहीं हैं, बल्कि अन्य कई नेता भी इस्लामी कट्टरता को बढ़ावा दे रहे हैं।

5 प्रमुख कट्टरपंथी नेता और उनके कार्य

मोहम्मद नाहिद इस्लाम
27 वर्षीय नाहिद इस्लाम 2024 के 'स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन' आंदोलन का प्रमुख आयोजक था। शेख हसीना की सरकार को गिराने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। अस्थायी प्रशासन में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रमुख बनने के बाद उसने नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) की स्थापना की। आलोचक मानते हैं कि नाहिद का संगठन जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी समूहों से जुड़ा हुआ है। नाहिद ने भारत विरोधी रुख अपनाया और अपनी युवा आकर्षण से कट्टरपंथी विचारों को छात्रों में फैलाया।

हसनत अब्दुल्लाह
हसनत इस छात्र आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्होंने एनसीपी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दक्षिणी क्षेत्र में आयोजक बने। हसनत लगातार भारत विरोधी बयान दे रहे हैं। दिसंबर 2025 में ढाका में उन्होंने कहा कि अगर भारत बांग्लादेश को अस्थिर करने की कोशिश करेगा या हसीना समर्थकों को शरण देगा, तो उत्तर-पूर्वी राज्यों के अलगाववादियों को सहायता दी जाएगी।

आसिफ महमूद
आसिफ महमूद भी छात्र आंदोलन से जुड़े थे और अस्थायी प्रशासन में युवा एवं खेल मंत्रालय संभालने का कार्य किया। उन पर कट्टरपंथी छात्र संगठनों को समर्थन देने का आरोप है। वे इस्लामी छात्र संगठन जैसे समूहों को बढ़ावा दे रहे हैं और भारत विरोधी भावनाओं को प्रोत्साहित कर रहे हैं।

शफीकुर्रहमान
बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के नेता शफीकुर्रहमान कट्टरपंथी विचारों के प्रमुख प्रचारक हैं। हसीना सरकार के पतन के बाद जमात सक्रिय हुई और धार्मिक राजनीति को प्रोत्साहित करने लगी। शफीकुर्रहमान ने अल्पसंख्यकों में डर उत्पन्न किया और सार्वजनिक रूप से हिंदुओं के खिलाफ बयानबाजी की।

ममुनुल हक
हिफाजत-ए-इस्लाम के महासचिव ममुनुल हक कट्टरपंथ और एंटी-इंडिया एजेंडे के सबसे विवादास्पद व्यक्ति हैं। 2021 में प्रधानमंत्री मोदी के बांग्लादेश दौरे के दौरान उन्होंने हिंसक प्रदर्शनों का नेतृत्व किया। 2024 में जेल से रिहा होने के बाद हक ने यूनुस से मुलाकात की और महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों के प्रति कट्टर विरोधी दृष्टिकोण अपनाया। उन्होंने "भारत को हिंदुत्व शासन से मुक्त करने" के आंदोलनों का खुले तौर पर समर्थन किया।