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Up kiran,Digital Desk : सोचिए एक ऐसा कानून, जो देश के सबसे वंचित समुदायों में से एक, आदिवासियों को उनके जल, जंगल, ज़मीन पर हक़ देने के लिए बनाया गया हो, और वह कानून 28 सालों तक सिर्फ कागज़ों में ही कैद रहे। यह कहानी है पेसा कानून (PESA Act) की, और यह लड़ाई लड़ी जा रही है झारखंड हाईकोर्ट में।

गुरुवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एक बार फिर कड़ी फटकार लगाई। चीफ़ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान की अदालत ने सरकार से दो टूक सवाल पूछा - "यह बताइए कि आप पेसा के नियम कितने दिनों में लागू करेंगे? हमें एक पक्की तारीख दीजिए।"

क्या है यह पेसा कानून?

पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, जिसे छोटा करके पेसा कानून कहते हैं, 1996 में केंद्र सरकार ने बनाया था।

  • मकसद: इसका सीधा-सा मकसद था - अनुसूचित यानी आदिवासी बहुल इलाकों में ग्राम सभा को सबसे ज़्यादा ताकतवर बनाना, ताकि वहां के प्राकृतिक संसाधनों (जैसे जंगल, ज़मीन, बालू, खनिज) पर कोई भी फैसला उनकी सहमति के बिना न लिया जा सके।
  • हकीकत: लेकिन बिहार के समय से लेकर झारखंड बनने के 24 साल बाद तक, यानी कुल 28 सालों में, झारखंड की किसी भी सरकार ने इसे ज़मीन पर लागू करने के लिए ज़रूरी 'नियम' (नियमावली) ही नहीं बनाए।

हाईकोर्ट क्यों हुआ इतना नाराज़?

  • जुलाई 2024 में मिला था आदेश: इसी साल 29 जुलाई को हाईकोर्ट ने सरकार को दो महीने के अंदर नियम बनाकर लागू करने का आदेश दिया था।
  • आदेश का पालन नहीं हुआ: लेकिन जब सरकार ने तय समय में यह काम नहीं किया, तो मंच ने सरकार के खिलाफ अवमानना (Contempt of Court) यानी कोर्ट का आदेश न मानने की याचिका दायर कर दी।

सुनवाई में सरकार ने क्या कहा?

सरकार ने कोर्ट को बताया, "हमने नियम का ड्राफ्ट तो बना लिया है। पहले उसे एक कमेटी को भेजा, फिर दूसरी कमेटी को... अब वहां से कैबिनेट जाएगा..."

इस टालमटोल वाले जवाब पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया। सरकार ने कोर्ट से यह भी गुज़ारिश की कि तब तक बालू और छोटे खनिजों के आवंटन पर लगी रोक हटा दी जाए, लेकिन कोर्ट ने यह अर्जी भी खारिज कर दी और रोक को बरकरार रखा।

अब सरकार को एक शपथपत्र (Affidavit) में यह लिखकर देना होगा कि वह यह कानून आखिर कब तक लागू करेगी। मामले की अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी, और सबकी नज़रें इस पर टिकी हैं कि क्या 28 साल से अपने हक़ का इंतज़ार कर रहे आदिवासियों को आखिरकार न्याय मिलेगा?