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Up Kiran, Digital Desk: भारत के 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' (Ease of Doing Business) की छवि पर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है. डेनमार्क की एक बड़ी लॉजिस्टिक्स कंपनी विंट्रैक (Wintrack) ने अपनी भारतीय इकाई, ट्राइडेंट फ्रेट के माध्यम से भारत में अपने सभी आयात-निर्यात कार्यों को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया है. कंपनी ने आरोप लगाया है कि चेन्नई कस्टम्स के अधिकारी शिपमेंट क्लियर करने के लिए उनसे रिश्वत मांग रहे थे.

वहीं, चेन्नई कस्टम्स विभाग ने इन सभी आरोपों को "झूठा, दुर्भावनापूर्ण और बेबुनियाद" बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया है.

कंपनी ने लगाया गंभीर आरोप: हमसे ₹1 लाख की रिश्वत मांगी गई

विंट्रैक के अनुसार, उनके तीन कंटेनर, जो दुनिया की सबसे बड़ी शिपिंग लाइनों में से एक मersk के लिए थे, जुलाई महीने से चेन्नई बंदरगाह पर फंसे हुए थे. कंपनी ने दावा किया है कि कस्टम्स अधिकारियों ने इन कंटेनरों को छोड़ने के लिए कथित तौर पर ₹1 लाख की रिश्वत की मांग की.

कंपनी ने कहा कि उन्होंने अपने नैतिक मूल्यों के कारण घूस देने से साफ इनकार कर दिया. जब कोई और रास्ता नहीं बचा, तो उन्होंने भारत में अपना पूरा ऑपरेशन ही बंद करने का "अचानक लेकिन जरूरी" फैसला ले लिया. कंपनी ने इस पूरे मामले की जानकारी वाणिज्य मंत्रालय को भी एक ईमेल के जरिए दी है.

चेन्नई कस्टम्स ने आरोपों को बताया 'झूठा और दबाव बनाने की कोशिश'

दूसरी ओर, चेन्नई कस्टम्स ने एक बयान जारी कर इन आरोपों का जोरदार खंडन किया है. कस्टम्स विभाग का कहना है:

आरोप पूरी तरह से "झूठे और दुर्भावनापूर्ण" हैं.

कंटेनरों को इसलिए रोका गया था क्योंकि उनमें माल की गलत जानकारी (misdeclaration of cargo) दी गई थी, जो एक कानूनी अपराध है.

कंपनी पर नियमों के तहत जुर्माना लगाया गया था, जिसे चुकाने के बजाय वे अब झूठे आरोप लगाकर अधिकारियों पर "दबाव बनाने की कोशिश" (arm-twisting) कर रहे हैं.

यह मामला अब एक विदेशी कंपनी के गंभीर आरोपों और एक प्रमुख सरकारी विभाग के इनकार के बीच फंस गया है. यह घटना भारत की वैश्विक व्यापारिक प्रतिष्ठा के लिए एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है, जहां एक तरफ सरकार निवेश को आकर्षित करने के लिए 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' को बढ़ावा दे रही है, वहीं दूसरी तरफ इस तरह के आरोप एक अलग ही तस्वीर पेश कर रहे हैं.