Up kiran,Digital Desk : पूरे सात साल के लंबे इंतजार के बाद, पंजाब के गांवों में एक बार फिर चुनावी माहौल गरमा गया है। जिला परिषद और पंचायत समिति के यह चुनाव सिर्फ एक लोकल इलेक्शन नहीं हैं, बल्कि यह 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियों के लिए एक लिटमस टेस्ट की तरह हैं। इस बार सियासी बिसात पूरी तरह बदल चुकी है।
2018 में हीरो थी कांग्रेस, पर आज राह आसान नहीं
याद कीजिए साल 2018, जब कांग्रेस ने इन चुनावों में शानदार जीत हासिल की थी और अकाली दल दूसरे नंबर पर था। उस समय आम आदमी पार्टी (आप) तो मैदान में भी नहीं थी। कांग्रेस आज भी उसी जीत को दोहराना चाहती है, ताकि गांवों में अपनी पकड़ को और मजबूत कर सके। लेकिन इस बार, कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा सिरदर्द कोई और नहीं, बल्कि उसकी अपनी ही 'गुटबाजी' यानी अंदर की लड़ाई है।
एक बयान ने बिगाड़ दिया सारा खेल
चुनावों से ठीक पहले, कांग्रेस की ही बड़ी नेता नवजोत कौर (नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी) के एक बयान ने पार्टी में भूचाल ला दिया। उन्होंने सीएम की कुर्सी से लेकर टिकटों तक के लिए 'रेट' तय होने जैसी गंभीर बातें कह डालीं। भले ही पार्टी ने उन्हें सस्पेंड कर दिया हो, लेकिन उन्होंने विरोधी पार्टियों को बैठे-बिठाए एक बड़ा मुद्दा थमा दिया, जिसे 'आप' और अकाली दल खूब उछाल रहे हैं।
इस बार मुकाबला है कड़ा
- आम आदमी पार्टी (आप): अब राज्य की सत्ता पर काबिज 'आप' पहली बार इन चुनावों में उतर रही है, जिससे यह मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
- अकाली दल: अकाली दल ने भी अपनी पंथक राजनीति के जरिए गांवों में अपनी पकड़ को मजबूत किया है।
- भाजपा: भाजपा का भी वोट बैंक पहले से बढ़ा है।
ऐसे में, कांग्रेस के लिए यह लड़ाई चौतरफा हो गई है, जहाँ उसे अपने घर को भी संभालना है और बाहर विरोधियों से भी लड़ना है।
हम गांव के मुद्दे उठा रहे हैं: राजा वड़िंग
इस बीच, पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग और उनकी टीम गांव-गांव जाकर प्रचार में जुटी है। उनका कहना है कि पंजाब के लोग अब कांग्रेस को मौका देना चाहते हैं। वड़िंग ने कहा,
"हमने लोगों को 'आप' सरकार के अधूरे वादे याद दिलाए हैं। महिलाओं को 1000 रुपये महीने देने का वादा आज तक पूरा नहीं हुआ, पंचायतों को विकास के लिए पैसा नहीं मिल रहा, मनरेगा की दिहाड़ी घटा दी गई है और गांवों में सड़कों का बुरा हाल है। खराब कानून-व्यवस्था भी एक बड़ा मुद्दा है। गांव के लोग इस बार इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर वोट डालेंगे।"
यह चुनाव कांग्रेस के लिए एक अग्निपरीक्षा है। अगर पार्टी अपनी अंदरूनी लड़ाई को छोड़कर एकजुट हो जाए, तो वह विरोधियों को कड़ी टक्कर दे सकती है। लेकिन सवाल यही है कि क्या कांग्रेस ऐसा कर पाएगी?
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