
Up Kiran, Digital Desk: अक्सर हम पूजा-पाठ तो करते हैं, लेकिन मन कहीं और भटकता रहता है. ऑफिस की चिंता, घर की परेशानियां या भविष्य की प्लानिंग, ख्याल कहीं न कहीं दौड़ते रहते हैं. ऐसे में भक्ति का पूरा फल कैसे मिलेगा? सुंदरकांड की एक छोटी सी चौपाई हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और ध्यान का असल मतलब क्या है.
यह चौपाई उस समय की है जब हनुमान जी माता सीता की खोज में अशोक वाटिका पहुंचते हैं. वहां वह देखते हैं कि माता सीता बहुत ही दुखी और चिंतित अवस्था में हैं. इसी दृश्य को तुलसीदास जी ने सुंदर शब्दों में लिखा है:
"निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन"
इसका सीधा सा मतलब है कि माता सीता की आँखें तो अपने चरणों की ओर झुकी हुई थीं, लेकिन उनका मन प्रभु श्री राम के चरण कमलों में लगा हुआ था.सोचिए, चारों तरफ राक्षसों का पहरा, एक अनजानी जगह और भविष्य का कोई पता नहीं, फिर भी उनका ध्यान सिर्फ और सिर्फ प्रभु राम में ही लगा था. यही सच्ची भक्ति और एकाग्रता है.
ये चौपाई हमें क्या सिखाती है?
यह चौपाई आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण है. हम सब अपनी जिंदगी में किसी न किसी तरह की 'अशोक वाटिका' में घिरे हुए हैं, जहाँ चारों तरफ तनाव और चिंताएं हैं. ऐसे में यह चौपाई हमें कुछ बातें सिखाती है:
मन को साधें: शरीर चाहे कहीं भी हो, लेकिन अगर आपका मन ईश्वर से जुड़ा है, तो कोई भी मुश्किल आपको तोड़ नहीं सकती. जैसे सीता जी का शरीर लंका में था, पर मन राम में था.
सच्चा ध्यान: भक्ति का मतलब सिर्फ आँखें बंद करके बैठना नहीं है. असली ध्यान तो मन का है. जब आप पूजा करें, तो कोशिश करें कि आपका मन भी वहीं हो, भगवान के स्वरूप में, उनके नाम में.
विश्वास की शक्ति: माता सीता का विश्वास ही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी. उन्हें पता था कि प्रभु राम उन्हें लेने जरूर आएंगे. यह चौपाई उसी अटूट विश्वास का प्रतीक है.
जब भी आपका मन बहुत भटक रहा हो या किसी बात से परेशान हो, तो सुंदरकांड की इस चौपाई को याद करें. इसे धीरे-धीरे दोहराएं और इसके अर्थ पर ध्यान लगाएं. आप महसूस करेंगे कि आपका मन शांत हो रहा है और आपको एक नई ऊर्जा मिल रही है. भक्ति का दिखावा करने के बजाय, अगर हम मन से जुड़ना सीख जाएं, तो जीवन की बड़ी से बड़ी लड़ाई भी आसानी से जीती जा सकती है.