
Up Kiran, Digital Desk: भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। आधिकारिक तौर पर इसे एक व्यक्तिगत फैसला बताया जा रहा है, लेकिन अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि उनके इस कदम के पीछे सरकार के साथ उनके कुछ 'लंबे समय से चले आ रहे विवाद' हो सकते हैं।
यह खबर ऐसे समय में सामने आई है जब राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं और राजनीतिक माहौल पहले से ही गर्म है। जगदीप धनखड़, जो पहले पश्चिम बंगाल के राज्यपाल भी रह चुके हैं, अपने कार्यकाल के दौरान कुछ फैसलों और बयानों को लेकर पहले भी चर्चा में रहे हैं। उपराष्ट्रपति के रूप में, वे राज्यसभा के सभापति भी होते हैं, और इस पद पर रहते हुए उनके और सरकार के बीच विभिन्न मुद्दों पर मतभेद पैदा होना कोई नई बात नहीं है।
सूत्रों के मुताबिक, धनखड़ कुछ सरकारी नीतियों, नियुक्तियों या फैसलों से असहमत थे। ये असहमति छोटी-मोटी न होकर, काफी समय से चल रही थीं और सुलझ नहीं पा रही थीं। ऐसे में, अपने पद से इस्तीफा देना उनके लिए एक अंतिम विकल्प रहा होगा, ताकि उन्हें उन नीतियों या फैसलों का समर्थन न करना पड़े, जिनसे वे सहमत नहीं थे।इन विवादों का सटीक स्वरूप और उनकी गहराई अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन इस इस्तीफे ने कई अटकलों को जन्म दे दिया है।
यह घटना संसदीय लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति के संवैधानिक पद की गरिमा और उसकी स्वायत्तता पर भी सवाल उठाती है। क्या एक उपराष्ट्रपति को सरकार की नीतियों के प्रति पूरी तरह से सहमत होना चाहिए, या उसे स्वतंत्र रूप से अपनी राय रखने का अधिकार होना चाहिए?
सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी की ओर से इस मामले पर कोई विस्तृत टिप्पणी नहीं की गई है, सिवाय इसके कि यह उनका व्यक्तिगत निर्णय था। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक और मीडिया इस इस्तीफे के पीछे के वास्तविक कारणों को जानने के लिए लगातार अटकलें लगा रहे हैं।
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