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Up Kiran, Digital Desk: 29 जुलाई को संसद के मानसून सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ऑपरेशन सिंदूर पर चल रही चर्चा में हिस्सा लिया और भाजपा पर तगड़ा हमला किया। इस दौरान उन्होंने विपक्षी नेताओं के प्रति सत्ता पक्ष के रुख पर भी सवाल उठाए।
अखिलेश यादव ने संसद में कहा, "जब विपक्ष के नेता अपना भाषण खत्म करते हैं, तो उन्हें बधाई मिलती है, लेकिन जब सत्ता पक्ष के सदस्य अपना बयान देते हैं, तो कोई उन्हें शुभकामनाएं नहीं देता।" उनके इस बयान से यह स्पष्ट हुआ कि वह भाजपा पर आरोप लगा रहे थे कि वे अपने ही नेताओं का सम्मान नहीं करते, जबकि विपक्ष को हर समय प्रोत्साहित किया जाता है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि डीएमके सांसद एमके कनिमोझी के भाषण के बाद उनके आस-पास बैठे सांसदों ने उन्हें बधाई दी, जबकि भाजपा के सदस्य ऐसा कुछ नहीं करते। इस पर अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा, "यह परिपाटी तो बहुत अलग है।"
इसके बाद उन्होंने कविता के अंदाज में भाजपा पर कटाक्ष करते हुए कहा, "मैं दुनिया को मनाने में लगा हूं, मगर मेरा ही घर मुझसे रूठा जा रहा है।" यह पंक्तियाँ उनकी पार्टी की स्थिति और भाजपा के आंतरिक असंतोष को लेकर उनका इशारा था।
ऑपरेशन सिंदूर और युद्धविराम पर अखिलेश का तर्क
अखिलेश यादव ने ऑपरेशन सिंदूर के बारे में बोलते हुए यह सवाल उठाया कि आखिर सरकार को युद्धविराम की घोषणा करने की जरूरत क्यों पड़ी? उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि सरकार खुद ही युद्धविराम की घोषणा करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। "क्योंकि सरकार और पाकिस्तान के बीच एक गहरी दोस्ती है, इसीलिए पाकिस्तान से ही युद्धविराम की घोषणा करवाई गई," यह बयान उन्होंने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए दिया।
उन्होंने यह भी कहा, "आज जब हम संसद में इस चर्चा को कर रहे हैं, तो सरकार को यह बताना चाहिए कि देश का कुल क्षेत्रफल कितना है।" उनके इस सवाल से स्पष्ट था कि वह चाहते हैं कि सरकार संसद में पारदर्शिता रखे और सभी अहम जानकारी साझा करे।
सत्ता और विपक्ष के बीच अंतर
अखिलेश यादव के इस बयान से यह संदेश साफ होता है कि विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच की दूरियां बढ़ रही हैं। जहां भाजपा पर आरोप लग रहे हैं कि वे अपने ही नेताओं को सम्मान नहीं देते, वहीं अखिलेश ने संसद में अपने सवालों और तंज के माध्यम से सरकार की नीतियों को कठघरे में खड़ा किया है।
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