Up kiran,Digital Desk : महाराष्ट्र की राजनीति में गठबंधन की गाठें अब ढीली पड़ती नजर आ रही हैं। कहने को तो राज्य में महायुति (Mahayuti) की सरकार है और सब मिलकर काम कर रहे हैं, लेकिन अंदरखाने की खबर कुछ और ही है। मंगलवार को बीजेपी और उनके सहयोगी एकनाथ शिंदे की शिवसेना के बीच की तनातनी सड़क पर आ गई।
मामला तब गरमा गया जब केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद रक्षा खडसे (Raksha Khadse) ने अपने ही सहयोगी दल, शिंदे गुट की शिवसेना पर गंभीर आरोप लगा दिए। यह विवाद जलगांव के मुक्ताईनगर इलाके का है, जो राजनीति का अखाड़ा बन चुका है।
"गुंडों जैसा व्यवहार कर रहे हैं सहयोगी"
मीडिया से बात करते हुए रक्षा खडसे का दर्द और गुस्सा दोनों साफ छलक रहा था। उन्होंने बेहद गंभीर बात कही कि जो मुक्ताईनगर कभी शांत हुआ करता था, आज वहां हिंसा और अपराध का बोलबाला है। रक्षा खडसे ने सीधे तौर पर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के कार्यकर्ताओं पर आरोप लगाया कि वे गुंडागर्दी कर रहे हैं।
बात यहीं नहीं रुकी। एक मां और सांसद के तौर पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा, "सिर्फ आम जनता ही नहीं, मेरी अपनी बेटी को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है। महिलाएं और बच्चे डर के साये में जी रहे हैं, कोई सुरक्षित नहीं है।" उनका कहना है कि शिंदे गुट के लोग गलत धंधे करने वालों को शह दे रहे हैं और आम लोगों को धमका रहे हैं।
आपको बता दें कि मुक्ताईनगर बीजेपी के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे (रक्षा के ससुर) का गढ़ रहा है, लेकिन 2024 के विधानसभा चुनाव में यहाँ बाजी पलट गई और शिंदे गुट के चंद्रकांत पाटिल जीत गए। अब उसी जीत की धमक बीजेपी को रास नहीं आ रही है।
बीजेपी नेता ने संभाला मोर्चा: "चुनाव बाद सुलझ जाएगा झगड़ा"
जहां एक तरफ रक्षा खडसे आग-बबूला हैं, वहीं बीजेपी के वरिष्ठ नेता और मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले (Chandrashekhar Bawankule) मामले को ठंडा करने (डैमेज कंट्रोल) की कोशिश कर रहे हैं। 2 दिसंबर को राज्य में नगर परिषद और नगर पंचायतों के चुनाव होने हैं। बावनकुले को भरोसा है कि जनता का साथ महायुति को ही मिलेगा और वे 51% वोट शेयर के साथ जीतेंगे।
बावनकुले ने साफ़ संकेत दिए हैं कि अभी चुनाव जीतने पर फोकस है। उन्होंने कहा कि अगर गठबंधन के साथियों के बीच कोई मतभेद हैं भी, तो उन्हें चुनाव के नतीजों के बाद बैठकर सुलझा लिया जाएगा।
लेकिन बड़ा सवाल यही है—क्या वाकई यह सिर्फ मतभेद है या फिर जमीन पर वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो चुकी है? क्योंकि जब एक केंद्रीय मंत्री अपनी बेटी की सुरक्षा का हवाला देकर सहयोगियों को ही कटघरे में खड़ा कर दे, तो बात दूर तलक जाती है। जनवरी 2026 में होने वाले बड़े निगम चुनावों से पहले यह रार महायुति के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।
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