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डेस्क। सनातन धर्म अद्भुत है। इसकी परंपरा अलौकिक है। सनातन परंपरा में भगवान सभी को दर्शन देते हैं। ऐसी ही एक कथा भगवान जगन्नाथ की है। जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ अपने एक मुस्लिम भक्त को उसकी मजार पर रुककर दर्शन देते हैं। इस दौरान वहां का नजारा अद्भुत होता है। भगवान जगन्नाथ के साथ ही इस मुस्लिम भक्त की भी जय जयकार होती है। यही तो सनातन धर्म का अनोखापन है।

इस समय भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा हो रही है। भगवान अपने नंदिघोष रथ या गरुड़ध्वज रथ में विराजमान होकर जगन्नाथपुरी मंदिर से मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाएंगे। मौसी के घर पर 7 दिनों तक ठहरने के बाद भगवान जगन्नाथ वापस अपने मंदिर जगन्नाथपुरी में लौटेंगे। इस यात्रा में कई अनोखे दृश्य दीखते हैं। भक्त अपने भगवान का रथ खींचने के लिए लालायित रहते हैं। मान्यतानुसार जो भी भक्त भगवान जगन्नाथ का रथ खींचता है वह जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के दर्शन के लिए प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में देश विदेश से भक्त जगन्नाथ पुरी पहुंचते हैं। भगवान जगन्नाथ सभी को दर्शन देते हैं। इस रथयात्रा में एक अद्भुत दृश्य तब नजर आता है, जब भगवान का रथ मंदिर से करीब 200 मीटर की दूरी पर ठहर जाता है और कुछ देर बाद यह रथ फिर से आगे बढ़ता है। दरअसल, यहां पर भगवान अपने एक मुस्लिम ह्क्त को दर्शन देने के लिए रुकते हैं।

गौरतलब है कि भगवान जगन्नाथ के मंदिर से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर एक मजार है, जिसे सालबेग की मजार के नाम से जाना जाता है। सालबेग भगवान जगन्नाथ के भक्त थे। इस मजार पर मुगल काल से ही भगवान जगन्नाथ के रथ के रुकने की परंपरा है। जनश्रुतियों के मुताबिक़ जहांगीर कुली खां उर्फ़ लालबेग जहांगीर के समय बंगाल का सूबेदार था। लालबेग ने एक हिंदू ब्राह्मण महिला जो भगवान जगन्नाथ की भक्त थी से विवाह किया था, जिससे सालबेग का जन्म हुआ।

सालबेग पर माता की भक्ति भाव का प्रभाव हुआ और वह भगवान जगन्नाथ का भक्त बन गया। लेकिन धार्मिक कारणों से कभी भगवान जगन्नाथ के दर्शन नहीं कर पाया। सालबेग ने मंदिर से कुछ दूरी पर ही अपनी एक कुटिया बनाकर वहीँ पर भगवान् की आराधना करने लगा।  अंतिम समय में सालबेग ने भगवान से प्रार्थना की कि प्रभु एक बार अपने इस भक्त को भी दर्शन दो। भगवान ने अपने इस भक्त की पुकार सुन ली और उसे दर्शन भी दिया।

जनश्रुतियों के अनुसार जब भगवान का रथ गुंडिचा मंदिर मंदिर के लिए चला तो 200 मीटर चलकर अचानक ठहर गया। भक्तों के काफी जोर लगाने के बावजूद रथ टस से मस नहीं हुआ। उसी समय भगवान जगन्नाथ रथ से उतरकर भक्त सालबेग को दर्शन दिए थे। इसके बाद रथ फिर वापस चलने लगा। भक्त समझ गए कि भगवान अपने भक्त को दर्शन देने गए हैं। इसके बाद उसी कुटिया में सालबेग की मृत्यु हो गई और  वहीं पर उनका मजार बना दिया गया। भक्त आज भी मुगल काल से चली आ रही उस परंपरा को निभाया जाता है। 

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