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Up Kiran , Digital Desk: अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के गलियारों में इन दिनों एक दिलचस्प और कुछ हद तक विरोधाभासी तस्वीर देखने को मिल रही है। एक तरफ भारत खुलकर तुर्किये की नीतियों का विरोध कर रहा है और उसके उत्पादों के बहिष्कार की बात कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ आतंक के पनाहगाह के रूप में कुख्यात पाकिस्तान के समर्थक तुर्किये को अब अमेरिका से एक बड़ा हथियार सौदा मिलने वाला है। यह घटनाक्रम कई सवाल खड़े करता है और क्षेत्र की भू-राजनीतिक समीकरणों को नए सिरे से परिभाषित करने की क्षमता रखता है।
हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर इस बात की पुष्टि की है कि उन्होंने तुर्किये गणराज्य को AIM-120C-8 उन्नत श्रेणी की मध्यम दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों की संभावित विदेशी सैन्य बिक्री को मंजूरी दे दी है। इस सौदे का अनुमानित मूल्य 225 मिलियन अमेरिकी डॉलर है। इस समझौते के तहत अमेरिका तुर्किये को 53 AIM-120C-8 मिसाइलें और 6 गाइडेंस सेक्शन प्रदान करेगा।
भारत का विरोध क्यों
यह घटनाक्रम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल के वर्षों में भारत और तुर्किये के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया है जिससे भारत की संप्रभुता और अखंडता पर सवाल उठे हैं। इसके जवाब में भारत ने तुर्किये की नीतियों की कड़ी आलोचना की है और यहां तक कि कुछ हलकों में तुर्किये उत्पादों के बहिष्कार की भी मांग उठी है।
पाकिस्तान का समर्थन और अमेरिका का साथ - एक विरोधाभास
अब सवाल यह उठता है कि एक तरफ पाकिस्तान जैसे देश का समर्थन करने वाले तुर्किये को अमेरिका जैसी शक्ति क्यों हथियार बेच रही है। इसके कई संभावित कारण हो सकते हैं। पहला नाटो (NATO) में तुर्किये की रणनीतिक स्थिति। तुर्किये नाटो का एक महत्वपूर्ण सदस्य है और इस क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में उसकी भूमिका अहम है। अमेरिका शायद नाटो के भीतर अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहता है और तुर्किये को अपने पाले में बनाए रखना चाहता है भले ही उसकी कुछ नीतियां विवादास्पद हों।
दूसरा अमेरिका का अपना भू-राजनीतिक हित। मध्य पूर्व और भूमध्य सागर के क्षेत्र में अमेरिका के अपने जटिल हित हैं और तुर्किये इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है। हथियारों की बिक्री के माध्यम से अमेरिका शायद तुर्किये के साथ अपने सैन्य और रणनीतिक सहयोग को मजबूत करना चाहता है ताकि अपने क्षेत्रीय हितों की रक्षा कर सके।
तीसरा हथियारों का बाजार और आर्थिक पहलू। हथियारों की बिक्री एक बड़ा व्यवसाय है और अमेरिका एक प्रमुख हथियार निर्यातक देश है। तुर्किये को मिसाइलें बेचने का निर्णय आर्थिक रूप से भी अमेरिका के लिए फायदेमंद हो सकता है।
भारत के लिए क्या हैं निहितार्थ
इस घटनाक्रम के भारत के लिए कई निहितार्थ हो सकते हैं। सबसे पहले यह भारत की कूटनीतिक प्रयासों के लिए एक झटका हो सकता है खासकर तुर्किये के साथ संबंधों को लेकर। दूसरा यह क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बदल सकता है जिससे भारत की सुरक्षा चिंताएं बढ़ सकती हैं। तीसरा भारत को अपनी विदेश नीति और कूटनीतिक रणनीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो सकती है ताकि इस बदलते परिदृश्य का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया जा सके।
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