
Up Kiran, Digital Desk: आज देश अपने दूसरे प्रधानमंत्री, लाल बहादुर शास्त्री की 121वीं जयंती मना रहा है. वे अपनी सादगी, ईमानदारी और मजबूत नेतृत्व के लिए जाने जाते हैं. महात्मा गांधी के साथ अपना जन्मदिन साझा करने वाले शास्त्री जी का जीवन हर किसी के लिए एक प्रेरणा है. आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी दिलचस्प बातें, जो उन्हें आज भी एक महानायक बनाती हैं.
नाम के साथ 'शास्त्री' कैसे जुड़ा: लाल बहादुर शास्त्री का असली उपनाम 'श्रीवास्तव' था, लेकिन उन्होंने इसे अपने नाम से हटा दिया था क्योंकि वे जाति व्यवस्था के खिलाफ थे.1925 में जब उन्होंने काशी विद्यापीठ से दर्शनशास्त्र में अपनी डिग्री पूरी की, तो उन्हें एक विद्वान के तौर पर 'शास्त्री' की उपाधि दी गई, जो बाद में उनके नाम का हिस्सा बन गई.
लाठीचार्ज की जगह पानी की बौछार: जब वे उत्तर प्रदेश में पुलिस और परिवहन मंत्री थे, तो उन्होंने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज की जगह पानी की बौछार का इस्तेमाल करने का आदेश दिया था. [1]यह उनकी मानवीय सोच का एक बेहतरीन उदाहरण था.
महिला कंडक्टरों की भर्ती: परिवहन मंत्री के रूप में, शास्त्री जी ने ही पहली बार बसों में महिला कंडक्टरों की भर्ती की पहल की थी. यह उस समय महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा और साहसी कदम था.
जब बेटे का प्रमोशन रुकवा दिया: शास्त्री जी अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते थे. एक बार जब उनके बेटे को नौकरी में गलत तरीके से प्रमोशन मिल गया, तो वे बहुत नाराज हुए. उन्होंने तुरंत उस प्रमोशन को रद्द करने का आदेश जारी कर दिया.
जय जवान, जय किसान' का नारा
1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद देश में अनाज की भारी कमी हो गई थी. उस मुश्किल समय में, शास्त्री जी ने देश को आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाने के लिए 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया और लोगों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की.
दूध की नदियां बहाने वाले: देश में 'श्वेत क्रांति' यानी दूध का उत्पादन बढ़ाने के विचार को शास्त्री जी ने ही आगे बढ़ाया. उन्होंने गुजरात में अमूल दूध सहकारी समिति का समर्थन किया और 1965 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की स्थापना की, जिसने भारत को दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादकों में से एक बना दिया.
भ्रष्टाचार के खिलाफ पहली समिति: 1962 में भारत के गृह मंत्री के रूप में, शास्त्री जी ने भ्रष्टाचार से निपटने के लिए औपचारिक रूप से पहली समिति का गठन किया.
पेंशन से चुकाया गया कार का लोन: शास्त्री जी की सादगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके निधन के बाद पता चला कि वे प्रधानमंत्री रहते हुए खरीदी गई अपनी फिएट कार की किश्तें अभी भी चुका रहे थे. पंजाब नेशनल बैंक से लिया गया 5,000 रुपये का यह लोन उनकी पत्नी ललिता ने अपनी पेंशन से चुकाया था.
नदी तैरकर स्कूल जाना: अपने स्कूली दिनों में, शास्त्री जी रोज़ाना अपने बैग और कपड़ों को सिर पर रखकर गंगा नदी तैरकर पार करते थे, क्योंकि उनके पास नाव से नदी पार करने के लिए पैसे नहीं होते थे.
मरणोपरांत मिला भारत रत्न: वे भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न से मरणोपरांत सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति थे. उनका जीवन हमें सिखाता है कि पद चाहे कितना भी बड़ा हो, व्यक्ति को हमेशा अपनी जड़ों से जुड़ा रहना चाहिए.