
Up Kiran, Digital Desk: आज सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को एक बड़ा झटका देते हुए, राज्य के छह दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करने का आदेश दिया है। यह फैसला दशकों से 'शोषणकारी तदर्थवाद' (exploitative ad-hocism) का सामना कर रहे कर्मचारियों के लिए न्याय की किरण लेकर आया है। कोर्ट ने राज्य सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें वित्तीय कठिनाइयों का हवाला देकर स्थायी पदों के सृजन से इनकार किया गया था।
'240 दिन काम, फिर भी अस्थायी?' सुप्रीम कोर्ट का अहम सवाल
सुप्रीम कोर्ट की दो-सदस्यीय पीठ, जिसमें जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता शामिल थे, ने कहा कि जो कर्मचारी कई वर्षों से सालाना 240 दिनों से अधिक काम कर रहे हैं, उनकी सेवाओं को अनिश्चित काल तक अस्थायी रखना अनुचित और शोषणकारी है। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार नियमित भर्ती प्रक्रियाओं को दरकिनार करने के लिए ऐसे तदर्थ (ad-hoc) या दैनिक वेतनभोगी नियुक्तियों का सहारा नहीं ले सकती। पीठ ने कहा, "राज्य एक संवैधानिक नियोक्ता है और यह बजट को उन कर्मचारियों की कीमत पर संतुलित नहीं कर सकता जो सबसे बुनियादी और आवर्ती सार्वजनिक कार्यों को करते हैं।"
दशकों के 'शोषण' पर SC की कड़ी फटकार
पीठ ने राज्य सरकार के 'तदर्थवाद' पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि "दीर्घकालिक श्रम का अस्थायी लेबल के तहत निष्कर्षण सार्वजनिक प्रशासन में विश्वास को कम करता है और समान संरक्षण के वादे का उल्लंघन करता है।" कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल वित्तीय तंगी का हवाला देकर कर्मचारियों के वाजिब अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। "तदर्थवाद वहीं पनपता है जहाँ प्रशासन अपारदर्शी होता है," कोर्ट ने टिप्पणी की, और स्थापना रजिस्टरों, हाजिरी पर्चियों और आउटसोर्सिंग व्यवस्थाओं के रखरखाव में पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर दिया।
न्याय में देरी, पर अंधेर नहीं: कर्मचारियों को मिलेगी नियमित नियुक्ति
यह मामला उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग (Uttar Pradesh Higher Education Services Commission) में 1989 से 1992 के बीच नियुक्त छह कर्मचारियों से जुड़ा था। इन कर्मचारियों ने अपनी सेवाओं को नियमित करने की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने माना था कि वे दैनिक वेतनभोगी थे और आयोग के नियमों में नियमितीकरण का कोई प्रावधान नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को पलट दिया और इन छह कर्मचारियों की सेवाओं को 24 अप्रैल 2002 से नियमित करने का आदेश दिया। यदि आवश्यक हुआ तो इसके लिए 'सुपरन्यूमेरी पोस्ट' (supernumerary posts) बनाई जाएंगी।
वेतन, पेंशन और बकाया का भुगतान भी होगा:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी निर्देश दिया कि इन कर्मचारियों को नियमित वेतन के न्यूनतम स्केल पर रखा जाएगा, और उनकी वरिष्ठता नियमितीकरण की तारीख से गिनी जाएगी। साथ ही, उन्हें पिछले बकाया वेतन और भत्तों का भुगतान किया जाएगा। सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए पुनर्गणित पेंशन और मृतक कर्मचारियों के परिवारों को अंतिम निपटान (terminal dues) का भुगतान भी किया जाएगा।
यह फैसला क्यों है महत्वपूर्ण?
यह फैसला न केवल इन छह कर्मचारियों के लिए एक बड़ी जीत है, बल्कि यह देश भर में समान परिस्थितियों का सामना कर रहे लाखों दैनिक वेतनभोगी और तदर्थ कर्मचारियों के लिए भी एक मिसाल कायम करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि सरकारें लंबे समय से काम कर रहे कर्मचारियों का शोषण नहीं कर सकतीं और वित्तीय समस्याओं को न्याय से बचने के बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकतीं।
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