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Up Kiran, Digital Desk: ज़रा सोचिए, कोडिंग की दुनिया कितनी अजीब है! जहाँ हर अक्षर, हर कॉमा, हर ब्रैकेट की अपनी एक खास जगह होती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जो छात्र देख नहीं सकते, वे इस जटिल दुनिया को कैसे सीखते होंगे? उनके लिए तो हर अक्षर और सिंबल एक जैसा ही होता है। यही वो मुश्किल थी जिसने गुरुग्राम के एक 17 वर्षीय छात्र, सिद्धांत वशिष्ठ, को बेचैन कर दिया और उसने एक ऐसा अविष्कार कर दिखाया जो नेत्रहीन छात्रों के लिए कोडिंग सीखने के तरीके को हमेशा के लिए बदल सकता है।

एक दोस्त की परेशानी से मिली प्रेरणा

सिद्धांत की यह कहानी किसी किताबी अविष्कार की नहीं, बल्कि दोस्ती और सहानुभूति की कहानी है। उनके स्कूल में एक नेत्रहीन छात्र था, जो पढ़ने में बहुत होशियार था, लेकिन जब बात कंप्यूटर साइंस और कोडिंग की आती, तो उसे बहुत संघर्ष करना पड़ता था। पारंपरिक कोडिंग लैंग्वेज नेत्रहीन छात्रों के लिए नहीं बनाई गई है। ब्रेल में भी इसे सीखना बहुत मुश्किल और महंगा होता है।

अपने दोस्त को हर रोज़ जूझते देख सिद्धांत ने ठान लिया कि वह इस समस्या का हल ज़रूर निकालेगा। उसने सोचा, "क्यों न कोडिंग को ही ऐसा बना दिया जाए जिसे छूकर और महसूस करके सीखा जा सके?"

कैसे काम करता है 'कोड इन कलर'?

सिद्धांत ने अपने इस इनोवेटिव आईडिया को नाम दिया कोड इन कलर यह कोई नई कोडिंग लैंग्वेज नहीं है, बल्कि कोडिंग सिखाने का एक बिल्कुल नया और क्रांतिकारी तरीका है।

यह सिस्टम न केवल नेत्रहीन छात्रों के लिए, बल्कि उन बच्चों के लिए भी फायदेमंद है जिन्हें सीखने में अन्य तरह की कठिनाइयाँ होती हैं, जैसे ऑटिज्म या डिस्लेक्सिया। यह कोडिंग जैसी जटिल चीज़ को एक मज़ेदार खेल में बदल देता है।

सिर्फ़ एक अविष्कार नहीं, एक उम्मीद

सिद्धांत का यह प्रोजेक्ट सिर्फ एक स्कूल प्रोजेक्ट बनकर नहीं रह गया। इसने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार जीते हैं और अब वह इसे और बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है। वह चाहते हैं कि 'कोड इन कलर' हर उस स्कूल और बच्चे तक पहुंचे जिसे इसकी ज़रूरत है।

यह कहानी हमें बताती है कि इनोवेशन करने के लिए बड़ी-बड़ी डिग्रियों या लैब की ज़रूरत नहीं होती। ज़रूरत होती है एक संवेदनशील दिल की, जो दूसरों की परेशानियों को समझ सके और उसे हल करने का जुनून रखता हो। सिद्धांत वशिष्ठ जैसे युवा इनोवेटर ही हमारे देश का असली भविष्य हैं, जो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सिर्फ़ पैसा कमाने के लिए नहीं, बल्कि दुनिया को एक बेहतर और ज़्यादा समावेशी (inclusive) जगह बनाने के लिए कर रहे हैं।