
Up Kiran , Digital Desk:उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में स्थित प्रसिद्ध सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर हर साल आयोजित होने वाला पारंपरिक उर्स इस बार विवादों के केंद्र में आ गया है। स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि यह मामला अब इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ तक पहुंच गया है। दरअसल, स्थानीय प्रशासन ने इस वर्ष दरगाह पर आयोजित होने वाले उर्स पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके खिलाफ दरगाह प्रशासन ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है। हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है और मामले की अगली सुनवाई के लिए 14 मई की तारीख मुकर्रर की है।
क्या है हाईकोर्ट में मामला?
यह मामला वक्फ नंबर 19 दरगाह शरीफ, बहराइच की ओर से दायर एक रिट याचिका पर आधारित है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता लालता प्रसाद मिश्र ने अदालत में दलील दी कि सैयद सालार मसूद गाजी की यह दरगाह 1375 ई. में फिरोजशाह तुगलक द्वारा बनवाई गई थी। तब से लेकर आज तक, यानी लगभग 650 वर्षों से, हर साल जेठ के महीने में इस दरगाह पर एक महीने तक चलने वाले भव्य उर्स का आयोजन किया जाता रहा है। इस उर्स में न केवल भारत के विभिन्न हिस्सों से, बल्कि विदेशों से भी लगभग चार से पांच लाख श्रद्धालु और जायरीन शामिल होते हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि इस वर्ष यह उर्स 15 मई से शुरू होने वाला था, लेकिन स्थानीय प्रशासन ने बिना कोई स्पष्ट कारण बताए इसे आयोजित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
विवाद की जड़ क्या है?
यह पूरा विवाद मुगल बादशाह औरंगजेब को लेकर जारी बहस के बीच उत्तर प्रदेश में सैयद सालार मसूद गाजी के व्यक्तित्व और उनकी दरगाह पर लगने वाले उर्स (जिसे "नेजे का मेला" भी कहा जाता है) को लेकर सामने आया है। कुछ हिंदू संगठनों ने सैयद सालार मसूद गाजी को सूफी संत मानने के बजाय एक मुगल आक्रांता करार देते हुए इस मेले का विरोध किया है। उनका तर्क है कि ऐसे व्यक्ति के सम्मान में मेले का आयोजन अनुचित है।
कौन थे सैयद सालार मसूद गाजी?
सैयद सालार मसूद गाजी की ऐतिहासिक पहचान को लेकर विभिन्न मत हैं।
एक पक्ष के अनुसार, वह क्रूर अफगान हमलावर महमूद गजनवी का भांजा और सेनापति था। महमूद गजनवी पर गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर को लूटने का आरोप है।
हालांकि, दूसरा धड़ा इस बात का खंडन करता है। उनका कहना है कि सोमनाथ मंदिर में हुई लूट के समय सालार मसूद की उम्र महज 11 साल थी। बाद में, 18 साल की उम्र में उत्तर प्रदेश के बहराइच में स्थानीय राजा सुहेलदेव के साथ हुए युद्ध में वह हार गया था और मारा गया था।
माना जाता है कि सैयद सालार मसूद गाजी की मृत्यु के बाद ही बहराइच में उनकी मजार (दरगाह) का निर्माण हुआ था, जहाँ सदियों से यह विशाल मेला लगता आ रहा है। बहराइच के अलावा भी उत्तर प्रदेश के कई अन्य जिलों में इस मेले का आयोजन होता रहा है।
यह विवाद न केवल धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक व्याख्याओं के टकराव को दर्शाता है, बल्कि स्थानीय परंपराओं और प्रशासनिक निर्णयों के बीच संतुलन की आवश्यकता को भी उजागर करता है। अब सभी की निगाहें हाईकोर्ट के अगले फैसले पर टिकी हैं, जिससे यह तय होगा कि सदियों से चली आ रही यह परंपरा इस वर्ष जारी रह पाएगी या नहीं।
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