
Up Kiran, Digital Desk: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अदालत परिसर और न्यायिक प्रणाली की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाले एक गंभीर मामले में बहुत सख़्त कार्रवाई की है। शीर्ष अदालत ने एक वकील राकेश किशोर (Rakesh Kishore) को सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने से हमेशा के लिए प्रतिबंधित (Permanently Banned) कर दिया है।
यह सख्त फैसला उनके ख़िलाफ़ चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) पर हमला करने की कोशिश और 'घोर कदाचार' (Grave Misconduct) के आरोपों के बाद लिया गया है।
क्यों लिया गया इतना सख़्त फ़ैसला?
अधिवक्ता राकेश किशोर पर यह आरोप था कि उन्होंने अदालत के भीतर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) पर हमला करने का प्रयास किया और अपने आचरण (Conduct) से न्यायपालिका (Judiciary) की अवमानना की।
कोर्ट ने इस दुर्व्यवहार को बेहद गंभीरता से लिया, क्योंकि इस तरह की घटना न सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालती है, बल्कि न्यायपालिका के प्रति आम जनता के भरोसे को भी कमज़ोर करती है।
इस पूरे मामले पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी अधिवक्ता (Advocate) का आचरण अदालत के प्रति सम्मानजनक और पेशे की नैतिकता (Professional Ethics) के अनुरूप होना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में मुख्य न्यायाधीश या किसी भी जज के प्रति शारीरिक या मौखिक दुर्व्यवहार पूरी तरह अस्वीकार्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने वकालत करने के उनके अधिकार को खत्म कर, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को भी इस वकील के लाइसेंस को पूरी तरह रद्द करने की प्रक्रिया शुरू करने की सलाह दी है, ताकि भविष्य में ये किसी भी अदालत में वकालत न कर सकें।
सुप्रीम कोर्ट का यह सख़्त निर्णय सभी वकीलों के लिए एक साफ़ संदेश है कि न्यायिक गरिमा और अनुशासन बनाए रखना हर अधिवक्ता की नैतिक ज़िम्मेदारी है, और इसमें किसी भी तरह की कोताही (Negligence) बर्दाश्त नहीं की जाएगी।