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Up Kiran, Digital Desk: झारखंड की धरती, जो अपने आप में कई प्राचीन रहस्यों और अद्भुत शक्तियों को समेटे हुए है, वहां चतरा जिले के इटखोरी प्रखंड में स्थित माँ भद्रकाली मंदिर (Maa Bhadrakali Mandir Chatra) एक ऐसा ही अद्वितीय तीर्थ स्थल है. यह सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और आध्यात्म का एक अद्भुत संगम है, जहाँ हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं. और इस बार, सावन के पवित्र महीने (Sawan 2025) में, यहाँ आयोजित सहस्त्र शिवलिंग जलाभिषेक (Sahastra Shivling Jalabhishek) ने पूरे क्षेत्र को शिव भक्ति के रंग में रंग दिया है. भक्तों का सैलाब ऐसा उमड़ा कि मानो देवलोक स्वयं धरती पर उतर आया हो!

क्या है सहस्त्र शिवलिंग का वो रहस्य, जिसे जान आप भी रह जाएंगे दंग?

इस मंदिर परिसर में स्थापित सहस्त्र शिवलिंग (Sahastra Shivling) अपनी विशिष्टता के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध है. यह कोई साधारण शिवलिंग नहीं, बल्कि एक ही विशाल शिला पर 1008 छोटे-छोटे शिवलिंग (1008 Shivling) उकेरे गए हैं. इसकी सबसे अद्भुत और चमत्कारिक विशेषता यह है कि जब कोई भक्त इसके शीर्ष पर एक लोटा जल अर्पित करता है, तो वह जल अपने आप प्रवाहित होकर सभी 1008 शिवलिंगों का एक साथ अभिषेक करता है यह दृश्य इतना विस्मयकारी होता है कि हर कोई महादेव की इस महिमा को देखकर अभिभूत हो जाता है. माना जाता है कि ऐसा जलाभिषेक करने से भक्तों को सहस्त्रों गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. पुरातत्वविदों के अनुसार, यह शिवलिंग गुप्तकालीन है और नौवीं शताब्दी के आसपास का बताया जाता है. कुछ मान्यताएं तो यह भी कहती हैं कि इसका निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया था.

देवघर ही नहीं, अब छत्रा भी है शिवभक्तों की नई मंजिल!

सावन के महीने में, विशेषकर हर सोमवार को (Sawan Somwar 2025), चतरा का यह मंदिर भक्तों की आस्था का एक प्रमुख केंद्र बन गया हैजिस प्रकार देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath Dham Deoghar) में लाखों श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक करने पहुंचते हैं, उसी तरह अब छत्रा का माँ भद्रकाली मंदिर भी शिव भक्तों के लिए एक नया और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन उभरा है.सावन की पहली सोमवारी पर तो यहाँ सुबह तीन बजे से ही भक्तों की लंबी कतारें लगनी शुरू हो गई थीं, और देर शाम तक जलाभिषेक और पूजा-अर्चना का यह पवित्र सिलसिला जारी रहा.इस दौरान "ओम नमः शिवाय" के जयकारों से पूरा मंदिर परिसर गूंज उठा, जिससे वातावरण में एक अद्भुत सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ.

माँ भद्रकाली मंदिर का वो प्राचीन इतिहास, जिसने रचे कई चमत्कार!

माँ भद्रकाली मंदिर का इतिहास (Maa Bhadrakali Mandir History) अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है. यह नौवीं शताब्दी में बंगाल के शासक राजा महेंद्र पाल द्वितीय द्वारा निर्मित कराया गया था मंदिर में स्थापित माँ भद्रकाली की अति दुर्लभ प्रतिमा काले पत्थर को तराश कर बनाई गई है, जो लगभग 5 फीट ऊंची है. यह शक्तिपीठ फल्गु नदी की सहायक महाने और बक्सा नदी के संगम तट पर स्थित है, जो इसकी सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व को और बढ़ा देता है.
यह स्थल सिर्फ हिन्दू धर्म के लिए ही नहीं, बल्कि तीन धर्मों - हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म का संगम माना जाता है. कहा जाता है कि भगवान गौतम बुद्ध ने यहाँ कई वर्षों तक निवास किया था, और जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर भगवान शीतल नाथ की यह जन्मभूमि भी मानी जाती है.मंदिर के पास एक प्राचीन बौद्ध स्तूप और एक पत्थर का बड़ा टुकड़ा भी है, जिस पर जैन धर्म के 10वें तीर्थंकर शीतलनाथ के पैरों के निशान होने की मान्यता है इस मंदिर में सच्चे मन से आने वाले भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं और माता के मस्तक पर चढ़ने वाले फूल के गिरने का भक्त बेसब्री से इंतजार करते हैं, जिसे साक्षात माता का आशीर्वाद माना जाता है.

आप भी पाएं महादेव और माँ भद्रकाली का आशीर्वाद!

सावन माह में शिवलिंग का अभिषेक करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सावन सोमवार को शिव व्रत और पूजन करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है. यह दिन शिव कृपा पाने का एक दुर्लभ और पुण्यदायी अवसर होता है. यदि आप भी अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करना चाहते हैं और जीवन में सुख-शांति चाहते हैं, तो एक बार चतरा के माँ भद्रकाली मंदिर में सहस्त्र शिवलिंग का जलाभिषेक अवश्य करें. यह अनुभव न केवल आपको आध्यात्मिक शांति देगा, बल्कि आपके जीवन को भी सकारात्मक ऊर्जा से भर देगा.

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