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मनोरंजन की दुनिया में सफलता पाना जितना कठिन होता है, उससे कहीं ज्यादा उसे बनाए रखना होता है। फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे सितारे आए जो रातों-रात स्टार बन गए, लेकिन फिर गुमनामी में खो गए। आज हम एक ऐसे कलाकार की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने हिंदी सिनेमा को नई दिशा दी, लेकिन अपनी जिंदगी के आखिरी दिन एक साधारण चॉल में गुजारने पड़े। ये कहानी है भगवान दादा की।
साधारण परिवार से स्टार बनने तक का सफर
भगवान दादा का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उनके पिता एक कपड़ा मिल में मजदूरी करते थे। भगवान दादा ने भी अपने जीवन की शुरुआत एक मजदूर के तौर पर की थी, लेकिन उनके भीतर अभिनय का जुनून था। फिल्मों में कदम रखने के बाद उन्होंने न सिर्फ अभिनय किया बल्कि स्टंट करने का नया ट्रेंड भी शुरू किया। वे बिना बॉडी डबल के स्टंट करने वाले पहले अभिनेताओं में से एक थे।
300 फिल्मों में काम, निर्देशन और निर्माण भी किया
भगवान दादा ने ‘क्रिमिनल’ फिल्म से अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने लगभग 300 फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने 'फहाद', 'किसान' जैसी कई चर्चित फिल्मों में काम किया। 1951 में आई फिल्म 'अलबेला' ने उन्हें जबरदस्त लोकप्रियता दिलाई। इस फिल्म में उन्होंने अभिनय के साथ निर्देशन भी किया था। यह फिल्म उस दौर की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक बनी।
शोहरत का शिखर और फिर गिरावट
‘अलबेला’ की कामयाबी के बाद भगवान दादा का जीवन पूरी तरह बदल गया था। उनके पास आलीशान बंगला था, कई लग्जरी गाड़ियां थीं और वह सेट पर अपनी गाड़ी से पहुंचते थे। लेकिन यह सब ज्यादा समय तक नहीं चला। उन्होंने ‘हंसते रहना’ नाम की एक फिल्म बनानी शुरू की थी, जिसमें किशोर कुमार को साइन किया गया था। फिल्म निर्माण के दौरान आए अड़चनों और अभिनेता के साथ हुई परेशानियों की वजह से यह फिल्म अधूरी रह गई और उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा।
आर्थिक तंगी ने छीन ली चमक
फिल्म की विफलता के बाद भगवान दादा को अपना बंगला और कारें बेचनी पड़ीं। उनका जीवन धीरे-धीरे कठिन होता गया और आखिरकार उन्हें एक साधारण चॉल में रहना पड़ा। आर्थिक तंगी और मानसिक तनाव के चलते उन्होंने शराब का सहारा लिया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनके प्रति लोगों की श्रद्धा बनी रही। गणपति उत्सव के दौरान उनकी चॉल के पास जुलूस जरूर रुकता था, जो इस बात का प्रमाण था कि जनता उन्हें आज भी याद करती थी।
दुखद अंत
2002 में दिल का दौरा पड़ने से भगवान दादा का निधन हो गया। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि फिल्मी दुनिया की चकाचौंध के पीछे कितना संघर्ष और अनिश्चितता छिपी होती है। वे उन चंद कलाकारों में से एक थे जिन्होंने सिर्फ अभिनय ही नहीं, बल्कि सिनेमा की दिशा बदलने में भी अहम भूमिका निभाई।