Up kiran,Digital Desk : अवैध धर्मांतरण के मामलों में हो रही पुलिस कार्रवाई पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक बड़ी और अहम टिप्पणी की है. एक मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने साफ कहा कि किसी को धार्मिक उपदेश देना या बाइबिल जैसी पवित्र किताब बांटना अपने आप में कोई अपराध नहीं है. कोर्ट ने इस मामले पर राज्य सरकार से जवाब भी मांगा है.
क्या है पूरा मामला?
यह मामला उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले का है, जहां राम केवल प्रसाद और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ अवैध धर्मांतरण कानून के तहत FIR दर्ज की गई थी. 17 अगस्त 2025 को मनोज कुमार सिंह नाम के एक व्यक्ति ने यह शिकायत दर्ज कराई थी. उनका आरोप था कि इन लोगों ने एक प्रार्थना सभा आयोजित की, जिसमें दलितों, गरीबों, महिलाओं और बच्चों को बाइबिल बांटी गई और उन्हें धर्म बदलने के लिए उकसाया गया.
इसी FIR को रद्द करवाने के लिए आरोपी पक्ष ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उनके वकील का कहना था कि यह एक झूठी FIR है, जिसे रद्द किया जाना चाहिए.
सरकारी वकील नहीं दे पाए जवाब
सुनवाई के दौरान जब कोर्ट ने सरकारी वकील से पूछा कि बाइबिल बांटना और धार्मिक उपदेश देना किस कानून के तहत अपराध है, तो वह इसका कोई ठोस जवाब नहीं दे पाए.
इसके बाद जस्टिस अब्दुल मोईन और जस्टिस बबिता रानी की बेंच ने कड़ा रुख अपनाते हुए पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए. कोर्ट ने सरकारी वकील को चार खास बिंदुओं पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि वह यह साबित करे कि सिर्फ बाइबिल बांटने से गैर-कानूनी धर्मांतरण का मामला कैसे बनता है. अब इस मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद होगी.
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