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Up Kiran, Digital Desk: देश में लोकतंत्र और उसकी सबसे मजबूत संस्थाओं में से एक, चुनाव आयोग, की भूमिका पर जब सवाल उठते हैं, तो हंगामा मचना स्वाभाविक है. अभी एक ऐसी ही बड़ी खबर सामने आई है, जिसने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया है. 272 पूर्व जजों और बड़े-बड़े नौकरशाहों ने एक खुला पत्र लिखकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका कहना है कि राहुल गांधी लगातार चुनाव आयोग की विश्वसनीयता (Election Commission's Credibility) पर बेवजह सवाल उठा रहे हैं और इससे हमारे लोकतांत्रिक सिस्टम (Democratic System) को कमजोर कर रहे हैं.

क्या है यह 'खुला पत्र' और क्यों है यह इतना खास?

यह 'खुला पत्र' (Open Letter) केवल कोई सामान्य बयान नहीं है, बल्कि देश की सेवा कर चुके उन गणमान्य व्यक्तियों की सामूहिक चिंता है, जिन्होंने दशकों तक हमारे कानूनों और प्रशासनिक ढांचे को संभाला है. इन 272 पूर्व जजों और नौकरशाहों का मानना है कि राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की स्वायत्तता और निष्पक्षता पर जो सवाल उठाए हैं, वे देश के लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं हैं.

पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि, "यह देखना दुखद है कि राहुल गांधी जैसे सार्वजनिक व्यक्ति लगातार भारत के चुनाव आयोग (EC) की स्वतंत्रता पर अनावश्यक रूप से हमला कर रहे हैं. वह यह आरोप लगाकर अपनी पिछली हर असफलता और जीत दोनों को चुनाव आयोग की मशीनरी के गलत प्रबंधन का परिणाम ठहराते रहे हैं कि ईसी पर सरकारी अधिकारियों का प्रभुत्व है और चुनाव के हर चरण में उन्हें सरकार की प्राथमिकताओं के अनुसार काम करने के लिए मजबूर किया जाता है." इन वरिष्ठ अधिकारियों ने यह भी बताया कि 1990 के दशक से ही चुनाव आयोग स्वतंत्र रूप से चुनाव कराता आ रहा है.

इन दिग्गजों का यह भी कहना है कि इस तरह के आरोप जनता के मन में चुनावी प्रक्रिया (Electoral Process) को लेकर अविश्वास पैदा करते हैं, जो किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है.

राहुल गांधी के आरोपों पर गरमाई राजनीति

दरअसल, राहुल गांधी पिछले कुछ समय से चुनावों के नतीजों या कुछ फैसलों को लेकर चुनाव आयोग पर निशाना साधते रहे हैं. उनका आरोप है कि आयोग केंद्र सरकार के इशारों पर काम कर रहा है और पूरी निष्पक्षता से काम नहीं कर पा रहा. इन्हीं बयानों के जवाब में यह 'खुला पत्र' लिखा गया है, जिसमें इन पूर्व अधिकारियों ने राहुल गांधी से अपील की है कि वे ऐसी बयानबाजी से बचें, जिससे संवैधानिक संस्थाओं की साख को नुकसान पहुंचे.

यह देखना दिलचस्प होगा कि इस 'खुले पत्र' के बाद राहुल गांधी और उनकी पार्टी इस पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं. लेकिन एक बात तो तय है, इस घटना ने भारतीय राजनीति में चुनाव आयोग की भूमिका और उस पर लगने वाले आरोपों को लेकर एक बार फिर बहस छेड़ दी है.

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