
Up Kiran, Digital Desk: भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Former Vice President Jagdeep Dhankhar) से जुड़ा एक ऐसा मामला सामने आया है, जो देश की शीर्ष सुरक्षा व्यवस्था (Top Security Protocol) पर गंभीर सवाल खड़े करता है। द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त विशेष जानकारी के अनुसार, नवंबर 2024 से जगदीप धनखड़ एक नॉन-बुलेटप्रूफ टोयोटा इनोवा (Non-Bulletproof Toyota Innova) में यात्रा कर रहे थे।
यह चौंकाने वाला तथ्य इसलिए सामने आया क्योंकि गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs - MHA) ने उनके बुलेटप्रूफ वाहनों (Bulletproof Vehicles) को बदलने के अनुरोध पर कथित तौर पर देरी की। यह सिर्फ एक वाहन बदलने का मामला नहीं, बल्कि देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की सुरक्षा से जुड़ी एक बड़ी चूक का संकेत है।
बुलेटप्रूफ गाड़ियों की 'बदहाल' हालत और MHA से अनुरोध:
मामला फरवरी 2024 में शुरू हुआ, जब उपराष्ट्रपति सचिवालय (Vice President's Secretariat) ने औपचारिक रूप से गृह मंत्रालय से नए उच्च-सुरक्षा वाले वाहनों (High-Security Vehicles) का अनुरोध किया। अनुरोध में धनखड़ की तीन आधिकारिक बुलेटप्रूफ बीएमडब्ल्यू कारों (Bulletproof BMW Cars) की बिगड़ती स्थिति का हवाला दिया गया था। संचार में स्पष्ट रूप से बताया गया था कि दो वाहन छह साल से अधिक की सेवा पूरी कर चुके थे, जबकि तीसरा भी कुछ ही महीनों में पांच साल की प्रतिस्थापन सीमा के करीब पहुंच रहा था।
28 फरवरी को उपराष्ट्रपति के उप सचिव द्वारा पुलिस आधुनिकीकरण डिवीजन के अतिरिक्त सचिव को भेजे गए पत्र में वाहन प्रतिस्थापन की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया था। इसमें दैनिक आवागमन के दौरान निरंतर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तीन नए बुलेटप्रूफ उच्च-सुरक्षा वाले वाहनों की खरीद प्रक्रिया को तुरंत शुरू करने का अनुरोध किया गया था। यह दर्शाता है कि उपराष्ट्रपति सचिवालय की ओर से सुरक्षा को लेकर कितनी गंभीरता थी।
प्रोक्योरमेंट में 'भ्रम' और मंत्रालय की 'सुस्ती':
शुरुआत में खरीद प्राधिकरण को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हुई। उपराष्ट्रपति कार्यालय ने पहले दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के सुरक्षा विभाग से संपर्क किया, जिसके बाद उन्हें गृह मंत्रालय के पास भेजा गया। अंततः, जून 2024 में मंत्रालय ने जवाब दिया। एक अवर सचिव ने उपराष्ट्रपति सचिवालय को सूचित किया कि बुलेटप्रूफ वाहन प्रणालियों में तकनीकी विशेषज्ञता वाले राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (National Security Guard - NSG) और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (Central Reserve Police Force - CRPF) के विशेषज्ञों सहित छह अधिकारियों का एक निरीक्षण बोर्ड (Inspection Board) गठित किया गया है।
यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि MHA ने अनुरोध पर तो ध्यान दिया, लेकिन कार्रवाई में काफी देरी हुई। फरवरी से जून तक, लगभग चार महीने का समय केवल एक निरीक्षण बोर्ड के गठन में लग गया, जबकि वाहनों की स्थिति लगातार बिगड़ रही थी।
उपराष्ट्रपति सचिवालय का 'स्वतंत्र फैसला': नॉन-बुलेटप्रूफ में यात्रा!
लेकिन नवंबर 2024 तक, उपराष्ट्रपति कार्यालय ने इंतजार न करते हुए एक स्वतंत्र निर्णय लिया। उन्होंने पुरानी बुलेटप्रूफ गाड़ियों को मानक वाणिज्यिक मॉडलों (Standard Commercial Models) से बदलने का फैसला किया। आंतरिक दिल्ली पुलिस संचार से पता चला कि सचिवालय ने बीएमडब्ल्यू बेड़े के पांच साल की परिचालन अवधि पार करने के बाद प्राथमिक वाहन के रूप में एक इनोवा (Innova) और बैकअप के रूप में एक फॉर्च्यूनर (Fortuner) का उपयोग करना शुरू कर दिया था। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से कोई भी वाहन बुलेटप्रूफ सुरक्षा से लैस नहीं था।
यह स्थिति तब और अधिक गंभीर हो जाती है जब यह याद किया जाता है कि उपराष्ट्रपति को दिल्ली पुलिस की ओर से Z-प्लस सुरक्षा (Z-plus Security Coverage) मिली हुई थी, जो देश की सबसे उच्च-स्तरीय सुरक्षा में से एक है। इसके बावजूद, उनके कार्यालय ने पुलिस विभाग से बुलेटप्रूफ वाहन प्राप्त करने के प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया, जब उन्हें नए बेड़े की सुरक्षा सीमाओं के बारे में सूचित किया गया था। विशेष ड्यूटी अधिकारी और सचिव को विशेष रूप से सूचित किया गया था कि प्रतिस्थापन वाहनों में बुलेटप्रूफ क्षमताएं नहीं हैं, और अनुरोध पर वैकल्पिक व्यवस्थाएं उपलब्ध थीं। इसके बावजूद, यह निर्णय क्यों लिया गया, यह एक बड़ा प्रश्न है।
धनखड़ के इस्तीफे तक जारी रही स्थिति और अनुत्तरित प्रश्न:
यह वाहन संबंधी स्थिति जगदीप धनखड़ के 22 जुलाई को उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने तक अपरिवर्तित रही, जब उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए पद छोड़ दिया। इस पूरे मामले पर संबंधित अधिकारियों, जिनमें उपराष्ट्रपति सचिवालय, गृह मंत्रालय के प्रवक्ता और दिल्ली पुलिस के अधिकारी शामिल हैं, को भेजे गए प्रश्नों का खरीद प्रक्रिया में देरी या सुरक्षा निहितार्थों के संबंध में कोई जवाब नहीं मिला है।
यह मामला न केवल एक उच्च पदस्थ व्यक्ति की सुरक्षा प्रोटोकॉल में संभावित विफलता को उजागर करता है, बल्कि सरकारी प्रक्रियाओं में लालफीताशाही और जवाबदेही की कमी पर भी सवाल उठाता है। यह घटनाक्रम निश्चित रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) और सरकारी कार्यप्रणाली (Government Functioning) को लेकर एक बड़ी बहस छेड़ सकता है। यह देखना होगा कि इस मामले पर आगे क्या कार्रवाई होती है और क्या भविष्य में ऐसी चूक को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाते हैं। यह राजनीतिक समाचार (Political News) में एक महत्वपूर्ण खबर है, जो सुरक्षा चूक (Security Lapse) पर प्रकाश डालती है।
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