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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को लेकर उठे विवाद ने चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और सटीकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। राष्ट्रीय जनता दल के युवा नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि राज्य में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत जारी मतदाता सूची के मसौदे में उनका नाम गायब है, जो न सिर्फ उनके चुनाव लड़ने के अधिकार को प्रभावित कर सकता है, बल्कि व्यापक मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर भी छाया डालता है।
तेजस्वी यादव ने मीडिया के सामने अपनी निराशा जाहिर करते हुए बताया कि जब उन्होंने अपना ईपीआईसी नंबर ढूंढ़ने की कोशिश की तो सिस्टम में कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। उनका कहना था कि मतदाता सूची से उनका नाम हटना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए चिंताजनक है और इससे उनकी नागरिकता तथा चुनावी भागीदारी पर भी प्रश्न उठते हैं। हालांकि, चुनाव आयोग की ओर से इस दावे को खारिज करते हुए बताया गया कि उनका नाम सूची में है और उनका वास्तविक ईपीआईसी नंबर 2020 से ही सक्रिय है।
चुनाव आयोग के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, तेजस्वी यादव के नाम से जुड़े दो अलग-अलग ईपीआईसी नंबरों में से एक मौजूद है जबकि दूसरा नंबर संदिग्ध है और इसकी जांच जारी है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि संभवतः दूसरा ईपीआईसी कभी वैध रूप से जारी नहीं किया गया। इस मामले की गहन जांच चल रही है ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी को ठीक से समझा जा सके।
इस विवाद के बीच, बिहार की मतदाता सूची में बड़ा बदलाव भी सामने आया है। आयोग द्वारा जारी मसौदा डेटा के मुताबिक, राज्य से 65 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं। कुल मिलाकर अब राज्य में लगभग 7.24 करोड़ मतदाता सूचीबद्ध हैं, जबकि पिछले रिकॉर्ड के अनुसार संख्या 7.89 करोड़ थी।
भारी संख्या में नामों के हटने के चलते मतदाता प्रभावित हो सकते हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर भी असर पड़ सकता है। खासकर उन इलाकों में जहां मतदाताओं की संख्या अधिक है, जैसे पटना, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर और मधुबनी। वहीं, कुछ जिलों में मतदाता संख्या अपेक्षाकृत कम बनी हुई है, जैसे शिवहर और अरवल।
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