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बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्माई हुई है, और इस बार मुद्दा सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि जनता की उम्मीदों और भविष्य की दिशा तय करने का है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता लालू प्रसाद यादव ने चुनावी मौसम के साथ अपनी राजनीतिक सक्रियता तेज कर दी है। बीमारी और उम्र को दरकिनार कर वे एक बार फिर अपने पुराने तेवर में लौट आए हैं—लेकिन इस बार उनका फोकस जनता के साथ-साथ गठबंधन के भीतर की रणनीति पर भी है।
जनता के मुद्दों पर सीधा फोकस
लालू यादव ने साफ कर दिया है कि उनकी प्राथमिकता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना है। लेकिन यह सिर्फ पारिवारिक महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि वे इसे एक व्यापक सामाजिक बदलाव के रूप में पेश कर रहे हैं। इस बार वे सीधे तौर पर जनता की समस्याओं को चुनावी बहस के केंद्र में लाने की कोशिश कर रहे हैं—चाहे वह युवाओं के लिए रोजगार हो या बिहार की क्षेत्रीय अस्मिता का सवाल।
उनकी सोशल मीडिया पोस्टों और हालिया जनसभाओं में लगातार इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि बिहार को फैक्ट्री की जरूरत है, सिर्फ वोट नहीं। लालू का दावा है कि केंद्र की योजनाएं बिहार को नज़रअंदाज़ करती रही हैं और अब वक्त है कि राज्य के लोग अपनी आवाज बुलंद करें।
गठबंधन की गांठों से परेशान जनता को मिलेगा विकल्प?
लालू प्रसाद न सिर्फ विरोधी पार्टियों से, बल्कि अपने ही गठबंधन में शामिल कांग्रेस की रणनीतिक उलझनों से भी जूझ रहे हैं। सीट बंटवारे और नेतृत्व के सवालों पर कांग्रेस की चुप्पी या अनिश्चितता से आम मतदाता भ्रमित है। यह स्थिति महागठबंधन की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रही है।
लालू अब मान चुके हैं कि अगर उन्होंने सीधे दखल नहीं दिया, तो तेजस्वी का नाम आगे बढ़ाना मुश्किल होगा। इस तनाव का असर जनता पर भी पड़ता दिख रहा है, क्योंकि वोटर स्पष्टता और स्थायित्व चाहते हैं, न कि अंदरूनी खींचतान।
पुराने समीकरणों से आगे बढ़ने की कोशिश
लालू इस बार अपने पारंपरिक वोट बैंक—मुस्लिम और यादव समुदाय—के साथ-साथ नए वोटरों को भी जोड़ने की रणनीति अपना रहे हैं। इसके लिए वे विकास, शिक्षा और क्षेत्रीय गौरव जैसे विषयों को उठा रहे हैं। युवाओं और महिलाओं को लक्षित करते हुए योजनाएं घोषित की गई हैं, जैसे 'माई-बहिन मान योजना' और स्थानीय युवाओं को वरीयता देने वाली 100% डोमिसाइल नीति।
इसके अलावा झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) जैसे दलों को साथ लाकर वे एक नया सामाजिक-राजनीतिक गठजोड़ खड़ा करना चाहते हैं, जो सिर्फ जातिगत समीकरणों तक सीमित न हो।
धार्मिक संतुलन और छवि सुधार की पहल
राजद को लंबे समय से मुस्लिमों की समर्थक पार्टी माना जाता रहा है, लेकिन इस बार लालू अपनी छवि को संतुलित दिखाना चाह रहे हैं। राहुल गांधी के जानकी मंदिर जाने के बाद लालू ने गयाजी के विष्णुपद मंदिर में दर्शन कर यह संकेत दिया कि पार्टी अब हर समुदाय को साथ लेकर चलना चाहती है।
यह पहल न सिर्फ राजनीतिक रूप से व्यावहारिक है, बल्कि सामाजिक सौहार्द की दिशा में भी एक जरूरी कदम मानी जा रही है, जिससे polarization की राजनीति का प्रभाव कम किया जा सके।
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