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जयपुरवासियों को उम्मीद थी कि रामगढ़ बांध फिर से पानी से लबालब भरेगा। लेकिन ड्रोन से की गई कृत्रिम बारिश की कोशिश न केवल लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी, बल्कि अब इस पर सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या इस तकनीक का कोई ठोस फायदा हुआ भी या नहीं। चार बार क्लाउड सीडिंग की गई, लेकिन केवल 0.8 मिमी बारिश होने का दावा सामने आया, जो आम नागरिकों के लिए न के बराबर साबित हुई।
टाइमिंग पर उठे सवाल – क्या सही वक्त पर हुआ प्रयोग?
भारतीय मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक लक्ष्मण सिंह राठौड़ ने प्रयोग की टाइमिंग को ही सबसे बड़ी गलती बताया है। उनके अनुसार, जब मानसून सक्रिय था और बारिश पहले से ही हो रही थी, उस समय क्लाउड सीडिंग करवाना गलत निर्णय था। उन्होंने इसे ऐसे समझाया जैसे "तेजी से दौड़ रही ट्रेन को धक्का देना" – बेवजह की कोशिश।
तकनीक की सीमाएं – ड्रोन बनाम विमान
ड्रोन तकनीक से बारिश कराना सुनने में भले ही आधुनिक लगे, लेकिन इसके परिणाम फिलहाल सीमित हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ड्रोन बहुत ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाते और वे सीमित मात्रा में ही रसायन (हाइग्रोस्कॉपिक मटेरियल) फैला सकते हैं। रामगढ़ में ड्रोन को सिर्फ 1 किलोमीटर तक उड़ाया गया, जबकि असरदार क्लाउड सीडिंग के लिए कम से कम 2 से 4 किलोमीटर की ऊंचाई जरूरी होती है।
कंपनी की सफाई – देर से अनुमति बनी वजह
GenXAI कंपनी के संस्थापक राकेश अग्रवाल का कहना है कि वे मई से जुलाई के बीच ही यह प्रयास करना चाहते थे, लेकिन सरकारी प्रक्रियाओं में देरी के कारण उन्हें अगस्त के आखिरी सप्ताह में मौका मिला। उनका कहना है कि उन्होंने 10,000 फीट की ऊंचाई तक ड्रोन उड़ाकर चार बार क्लाउड सीडिंग की, जिससे वैज्ञानिक रूप से कुछ बारिश दर्ज की गई। उनका मकसद रामगढ़ बांध में पानी इकट्ठा करना था, जो जयपुर की जल-जीवन रेखा माना जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण – क्या यह तकनीक भरोसेमंद है?
मौसम वैज्ञानिकों का साफ मानना है कि अब तक दुनियाभर में यह तय नहीं हो पाया है कि क्लाउड सीडिंग से हुई बारिश वास्तव में कृत्रिम प्रयासों का परिणाम थी या प्राकृतिक। ड्रोन के मुकाबले विमान और हेलिकॉप्टर कहीं अधिक प्रभावी माने जाते हैं, क्योंकि वे ज्यादा ऊंचाई तक उड़ान भर सकते हैं और बड़े क्षेत्र में रसायन फैला सकते हैं।
कब और कहां उपयोगी है कृत्रिम बारिश?
राठौड़ का मानना है कि क्लाउड सीडिंग जैसी तकनीक तब ही इस्तेमाल होनी चाहिए जब हालात वाकई गंभीर हों – जैसे सूखा पड़ गया हो, पीने के पानी की भारी किल्लत हो और अन्य कोई विकल्प न हो। यदि मानसून पहले से सक्रिय हो, तो अतिरिक्त बारिश नुकसान भी पहुंचा सकती है।