
Up Kiran, Digital Desk: बिहार, जहां की राजनीति हमेशा से जाति और सामाजिक समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है, वहां इन दिनों एक नई 'यात्रा' चर्चा का विषय बनी हुई है. इसका नाम है 'वोटर अधिकार यात्रा'. यह यात्रा किसी बड़े राजनीतिक दल की नहीं है, लेकिन इसे जिस तरह का जनसमर्थन मिल रहा है, उसने बिहार के राजनीतिक जानकारों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है.
क्या है इस यात्रा का मुख्य मकसद?
यह यात्रा वोट देने के अधिकार से जुड़े कुछ बड़े और बुनियादी सवाल उठा रही है. यात्रा का नेतृत्व कर रहे वामन मेश्राम और उनके सहयोगी नेताओं की सबसे बड़ी और मुखर मांग है- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को हटाकर वापस बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाएं. उनका तर्क है कि EVM की विश्वसनीयता पर कई सवाल खड़े हो चुके हैं और लोकतंत्र को बचाने के लिए यह जरूरी है कि मतदाता का भरोसा वोटिंग प्रक्रिया पर बना रहे, जो बैलेट पेपर से ही संभव है.
जातिगत समीकरणों से परे जाकर मिल रहा समर्थन
इस यात्रा की सबसे खास बात यह है कि यह किसी एक जाति या धर्म में बंधी हुई नहीं दिख रही है. आयोजकों का दावा है कि उन्हें हर समुदाय, खासकर पिछड़े और वंचित समाज के लोगों का भरपूर समर्थन मिल रहा है. जब यात्रा अलग-अलग जिलों से गुजर रही है, तो भारी भीड़ इकट्ठा हो रही है और लोग इन मांगों के समर्थन में आवाज उठा रहे हैं.
यह यात्रा सिर्फ EVM का विरोध नहीं है, बल्कि यह उन सभी सामाजिक समूहों को एक साथ लाने की एक कोशिश है, जिन्हें लगता है कि राजनीतिक पार्टियों ने उनके साथ न्याय नहीं किया है. यह एक संदेश देने की कोशिश है कि अगर सभी वंचित जातियां एकजुट हो जाएं, तो वे एक बड़ी राजनीतिक ताकत बन सकती हैं.
बिहार में विधानसभा चुनाव अब दूर नहीं हैं. ऐसे में यह यात्रा क्या गुल खिलाएगी और इसका चुनावी राजनीति पर क्या असर पड़ेगा, यह तो वक्त ही बताएगा. लेकिन इतना तो तय है कि इस यात्रा ने बिहार की शांत राजनीतिक झील में एक बड़ा पत्थर जरूर फेंक दिया है.