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Up Kiran, Digital Desk: ब्रिटेन की सरकार ने एक बड़ा और निर्णायक फैसला लेते हुए खालिस्तानी आतंकवादी समूहों से जुड़े वित्तीय तंत्र को जोरदार झटका दिया है। 4 दिसंबर को लंदन ने स्पष्ट कर दिया कि उसकी ज़मीन का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों या आतंकवाद की फंडिंग के लिए नहीं किया जा सकता। 

यह कार्रवाई खास तौर पर गुरप्रीत सिंह रेहल नाम के एक व्यक्ति और बब्बर अकाली लहर संगठन के खिलाफ की गई है, जिनके तार प्रतिबंधित खालिस्तानी समूह बब्बर खालसा इंटरनेशनल से जुड़े पाए गए हैं। इस अभूतपूर्व कदम से भारत की सुरक्षा चिंताओं को बल मिला है और दोनों देशों के बीच आतंकवाद के खिलाफ साझा लड़ाई को नई ऊर्जा मिली है।

फंडिंग के रास्तों पर ताला: कठोर आर्थिक प्रतिबंध लागू

ब्रिटेन के इस कदम का सीधा अर्थ है खालिस्तानी चरमपंथियों के आर्थिक स्रोतों पर गहरी चोट। 'काउंटर-टेररिज़्म (सैंक्शंस) (ईयू एग्जिट) रेगुलेशंस 2019' के अंतर्गत लगाए गए इन प्रतिबंधों की मुख्य बातें कुछ इस प्रकार हैं:

संपत्ति जब्त: रेहल, बब्बर अकाली लहर और इनसे जुड़ी कंपनियों के ब्रिटेन में मौजूद सभी फंड और आर्थिक संसाधन तुरंत फ्रीज कर दिए गए हैं। ब्रिटिश नागरिकों या संस्थाओं को अब इन संपत्तियों से संबंधित कोई लेन-देन करने की इजाजत नहीं है, जब तक कि एचएम ट्रेजरी (वित्त विभाग) विशेष लाइसेंस न दे।

संबद्ध कंपनियों पर कार्रवाई: रेहल से जुड़े सेविंग पंजाब सीआईसी, वाइटहॉक कंसल्टेशंस लिमिटेड और लोहा डिजाइन्स नामक गैर-निगमित समूह भी प्रतिबंधों के दायरे में आ गए हैं।

निदेशक बनने पर रोक: गुरप्रीत सिंह रेहल किसी भी कंपनी के निदेशक मंडल में शामिल नहीं हो सकते और न ही उसके प्रबंधन में सीधे या परोक्ष रूप से हिस्सा ले सकते हैं।

ब्रिटेन के वित्त मंत्रालय के अनुसार, घरेलू आतंकवाद विरोधी कानूनी ढांचे का उपयोग करके खालिस्तानी समूहों के धन प्रवाह को रोकने का यह पहला मामला है। इन कड़े प्रतिबंधों का उल्लंघन करने पर सात साल तक की जेल या 10 लाख पाउंड का भारी जुर्माना लगाया जा सकता है।