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Up Kiran, Digital Desk: कानून के रखवालों पर यदि आम नागरिकों की गरिमा और अधिकारों को कुचलने का आरोप लगे, तो यह लोकतंत्र की सबसे बड़ी विफलता मानी जाती है। बिहार के शेखपुरा जिले से सामने आई एक घटना ने न सिर्फ पुलिस प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर किया है, बल्कि जातिगत भेदभाव की गहरी जड़ें भी दिखा दी हैं।
यह मामला मेहुस थाना क्षेत्र का है, जहां एक ई-रिक्शा चालक प्रदुमन कुमार के साथ थाना प्रभारी द्वारा कथित रूप से जो व्यवहार किया गया, वह न केवल अमानवीय था, बल्कि शर्मसार कर देने वाला भी। प्रदुमन रोज़ की तरह सोमवार शाम अपनी ई-रिक्शा पर सवारी लेकर शेखपुरा से मेहुस गांव पहुंचा। सवारी को उतारने के बाद जैसे ही वह चौक की ओर बढ़ा, एक बुलेट सवार ने अचानक उसे रोक कर गालियाँ देनी शुरू कर दी। प्रदुमन को यह समझ नहीं आया कि वह व्यक्ति कौन है, क्योंकि वह वर्दी में नहीं था। बाद में पता चला कि वह कोई और नहीं बल्कि खुद मेहुस थाना प्रभारी प्रवीणचंद्र दिवाकर हैं।
थाना प्रभारी ने मौके पर ही पुलिस गाड़ी बुलवाई और प्रदुमन को जबरन हिरासत में ले लिया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, उसे सड़क पर ही डंडों से पीटा गया। इसके बाद उसका मुंह सूंघकर उस पर शराब पीने का शक जताया गया, लेकिन जब इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी, तो उसे थप्पड़ मारते हुए थाने ले जाया गया। पीड़ित के अनुसार, थाने में भी उसे पीट-पीटकर प्रताड़ित किया गया।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि थानाध्यक्ष ने कथित रूप से प्रदुमन से उसकी जाति पूछी, और जब उसने स्वयं को ब्राह्मण बताया, तो थानेदार ने अपमानजनक टिप्पणी करते हुए कहा कि उसे ब्राह्मणों को देखना भी पसंद नहीं। इसके बाद उन्होंने फर्श पर थूका और प्रदुमन को वह थूक जबरन चटवाया। यह पूरा घटनाक्रम उस स्थान पर घटा, जहां से आम नागरिक को न्याय की उम्मीद होती है।
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