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Up Kiran, Digital Desk:  कर्नाटक का तटीय इलाका जितना अपनी खूबसूरत बीचों के लिए मशहूर है, उतना ही अपने सदियों पुराने इतिहास के लिए भी जाना जाता है। लेकिन आज, इतिहास के ये अनमोल खजाने खतरे में हैं। समुद्र की बेरहम लहरों, सरकारी उपेक्षा और जागरूकता की कमी के कारण 6 प्राचीन और ऐतिहासिक स्थल धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो रहे हैं। इन धरोहरों को बचाने के लिए अब इतिहासकारों और पुरातत्वविदों ने एक बार फिर सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से गुहार लगाई है।

ये स्थल सिर्फ पत्थर की इमारतें नहीं हैं, बल्कि ये तुलु नाडु की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के जीवंत प्रमाण हैं। इतिहासकारों का कहना है कि अगर इन्हें बचाने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियां इस गौरवशाली अतीत से हमेशा के लिए अनजान रह जाएंगी।

खतरे में हैं कौन से 6 ऐतिहासिक स्थल?

इतिहासकारों ने जिन छह प्रमुख स्थलों पर तत्काल ध्यान देने की मांग की है, वे हैं:

कपू बीच (Kapu Beach) पर जैन शिलालेख: कपू बीच पर मौजूद चट्टानों पर एक प्राचीन जैन शिलालेख खुदा हुआ है, जो इस क्षेत्र में जैन धर्म के प्रभाव को दर्शाता है। समुद्र के खारे पानी और लहरों के लगातार थपेड़ों से यह शिलालेख धीरे-धीरे मिट रहा है।

उडुपी के पास बहादुरागढ़ किला (Bahaduragad Fort): यह किला कभी एक महत्वपूर्ण रणनीतिक ठिकाना हुआ करता था। आज इसकी दीवारें ढह रही हैं और चारों तरफ झाड़ियां उग आई हैं। इस पर अवैध कब्जों का भी खतरा मंडरा रहा है।

पदुबिद्री किला (Padubidri Fort): यह किला भी उपेक्षा का शिकार है। इसका अधिकांश हिस्सा खंडहर में तब्दील हो चुका है और इसे संरक्षित करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।

मल्लिकार्जुन मंदिर, बस्रूर (Mallikarjuna Temple, Basrur): बस्रूर एक समय में एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था। यहां स्थित मल्लिकार्जुन मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए जाना जाता है, लेकिन उचित रखरखाव के अभाव में यह अपनी चमक खो रहा है।

होसापट्टन का प्राचीन बंदरगाह (Ancient Port of Hosapattana): यह बंदरगाह कभी विदेशी व्यापार का एक प्रमुख केंद्र था। आज यहां इसके अवशेष ही बचे हैं, जो समुद्र के कटाव और मानवीय गतिविधियों के कारण नष्ट हो रहे हैं।

पवित्र कुंडों और समाधियां: तटीय क्षेत्र में कई प्राचीन पवित्र कुंड (तालाब) और समाधियां हैं, जो स्थानीय इतिहास और संस्कृति से जुड़ी हैं। इनमें से कई अब कचरे के ढेर में तब्दील हो गए हैं या सूख गए हैं।

इतिहासकारों की क्या है मांग?

उडुपी के प्रसिद्ध इतिहासकार और पुरातत्वविद प्रोफेसर टी मुरुगेशी का कहना है कि इन स्थलों को तत्काल ASI संरक्षण की जरूरत है। उन्होंने मांग की है कि:

इन सभी छह स्थलों को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित कर ASI के संरक्षण में लिया जाए।

समुद्र के किनारे स्थित स्थलों को बचाने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल कर सी-वॉल (Sea Wall) या अन्य सुरक्षात्मक दीवारें बनाई जाएं।

इन स्थलों का दस्तावेजीकरण (Documentation) और डिजिटलीकरण किया जाए ताकि इनका रिकॉर्ड सुरक्षित रहे।

स्थानीय लोगों और पर्यटकों को इन धरोहरों के महत्व के बारे में जागरूक किया जाए।

इतिहासकारों को डर है कि अगर सरकार ने अब भी आंखें मूंदे रखीं, तो कर्नाटक अपनी तटीय विरासत का एक बड़ा और अनमोल हिस्सा हमेशा के लिए खो देगा।