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कनाडा में प्रधानमंत्री पद के लिए हुए चुनावों ने पूरे देश की राजनीति को हिला कर रख दिया है। मतदान खत्म होते ही नतीजे सामने आने लगे हैं और मुकाबला बेहद दिलचस्प होता जा रहा है। इस बार सीधा मुकाबला लिबरल पार्टी के मार्क कार्नी और कंजर्वेटिव पार्टी के पियरे पोइलिवरे के बीच रहा।

चुनाव का समीकरण: कौन किससे आगे

पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद लिबरल पार्टी ने मार्क कार्नी पर भरोसा जताया था। वहीं, विपक्ष की ओर से पियरे पोइलिवरे मैदान में थे, जिनकी आक्रामक शैली ने ट्रूडो की लोकप्रियता में गिरावट लाने में बड़ी भूमिका निभाई।

अब तक के नतीजों पर नजर डालें तो:

लिबरल पार्टी (LIB): 22 सीटें जीत चुकी है और 131 पर आगे चल रही है, कुल वोट शेयर 47.1%

कंजर्वेटिव पार्टी (CON): 7 सीटों पर जीत, 115 सीटों पर बढ़त, वोट शेयर 39.5%

ब्लॉक क्यूबेकॉइस (BQ): 23 सीटों पर बढ़त, वोट शेयर 6.7%

न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP): 6 सीटों पर बढ़त, वोट शेयर 4.6%

ग्रीन पार्टी (GRN): कोई खास प्रदर्शन नहीं

कनाडा की संसद में बहुमत पाने के लिए किसी भी पार्टी को 172 सीटें जीतनी होती हैं, और इस समय लिबरल पार्टी बढ़त में नजर आ रही है।

मार्क कार्नी: बैंकिंग से प्रधानमंत्री बनने तक का सफर

60 वर्षीय मार्क कार्नी राजनीति में नए हो सकते हैं, लेकिन प्रशासनिक अनुभव में उनका कोई सानी नहीं।

कार्नी कनाडा और ब्रिटेन दोनों के केंद्रीय बैंक के गवर्नर रह चुके हैं।

जस्टिन ट्रूडो के बाद पीएम बने और खुद को अमेरिकी चुनौतियों का सामना करने वाला लीडर साबित करने में जुटे हैं।

उनकी शांत और रणनीतिक छवि ने उन्हें चुनाव में एक भरोसेमंद चेहरा बना दिया है, जो आर्थिक स्थिरता और विदेश नीति को नए स्तर पर ले जाने की क्षमता रखते हैं।

पियरे पोइलिवरे: जुझारू नेता जिसने माहौल बदला

दूसरी ओर, कंजर्वेटिव नेता पियरे पोइलिवरे का अंदाज बिल्कुल आक्रामक रहा।

उनकी प्रचार शैली में डोनाल्ड ट्रंप की झलक साफ नजर आई।

पोइलिवरे ने खासतौर पर घरेलू मुद्दों, आर्थिक नीतियों और आव्रजन पर फोकस किया।

पियरे ने ट्रूडो के खिलाफ जनता के गुस्से को भुनाने में बड़ी भूमिका निभाई थी, और एक समय ऐसा भी लगा कि वे आसानी से सत्ता में आ जाएंगे। हालांकि, आखिरी कुछ हफ्तों में मार्क कार्नी की लोकप्रियता ने बड़ा उलटफेर कर दिया।

भारत-कनाडा संबंधों पर पड़ेगा बड़ा असर

कनाडा में नया प्रधानमंत्री चाहे कोई भी बने, भारत के साथ संबंधों पर गहरा असर पड़ेगा।

जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में भारत-कनाडा संबंधों में काफी तल्खी आ गई थी, यहाँ तक कि दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित कर दिया था।

मार्क कार्नी ने पहले ही संकेत दे दिए हैं कि वे भारत के साथ रिश्तों को सुधारने के इच्छुक हैं।

पियरे पोइलिवरे भी भारत के साथ मजबूत व्यापार और कूटनीतिक संबंधों का समर्थन करते हैं।

इसका मतलब यह है कि भले ही चुनावी नतीजे कुछ भी हों, भारत और कनाडा के रिश्तों में एक नई सकारात्मक शुरुआत देखने को मिल सकती है।

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