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नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया है। सरकार ने कानून के पक्ष में तर्क देते हुए कहा कि वक्फ को मान्यता केवल उसके पंजीकरण के बाद दी जाती है, न कि मौखिक दावों के आधार पर। यह नियम पिछले सौ वर्षों से प्रचलन में है, इसलिए संशोधन आवश्यक और न्यायोचित है।
सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि वक्फ संपत्तियों की पहचान का मकसद राजस्व रिकॉर्ड को दुरुस्त करना है, ताकि सरकारी जमीनों को गलत तरीके से धार्मिक संपत्ति घोषित करने से रोका जा सके। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि किसी भी सरकारी जमीन को किसी धार्मिक समुदाय की संपत्ति नहीं माना जा सकता।
वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति को लेकर उठे सवालों पर केंद्र ने कहा कि 22 सदस्यों में से अधिकतम दो गैर-मुस्लिम सदस्य होंगे। यह फैसला केवल समावेशिता बढ़ाने के उद्देश्य से लिया गया है, और इसका वक्फ के प्रशासन में कोई हस्तक्षेप नहीं है।
केंद्र ने कोर्ट से अपील की है कि वह अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करे। साथ ही यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट किसी कानून के केवल कुछ प्रावधानों पर अंतरिम रोक नहीं लगा सकता। यदि किसी कानून की न्यायिक समीक्षा होनी है, तो पूरे अधिनियम पर होनी चाहिए।
सरकार ने यह भी बताया कि इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों में बहुमत से पारित किया गया है और इससे पहले ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी की 36 बैठकें हो चुकी हैं। करीब 97 लाख हितधारकों ने अपने सुझाव और ज्ञापन इस कानून पर दिए थे। समिति ने देश के 10 प्रमुख शहरों का दौरा कर जनता से राय भी जुटाई।
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