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Up Kiran, Digital Desk: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के आते ही राजनीतिक दल जमुई जिले की चकाई विधानसभा सीट पर अपनी रणनीतियां बनाने में जुट गए हैं। यह सीट इसलिए खास है क्योंकि पिछले 35 सालों से यहां कोई भी मौजूदा विधायक लगातार दूसरी बार जीत नहीं पाया है। हर चुनाव में जनता बदलाव का संदेश देती है, जिससे यह सीट राजनीतिक विशेषज्ञों के लिए हमेशा एक पहेली रही है।
दो परिवारों का कड़ा मुकाबला
चकाई विधानसभा की सियासत में दो परिवारों का लंबे समय से वर्चस्व रहा है—श्रीकृष्ण सिंह और फाल्गुनी प्रसाद यादव। 1962 से लेकर अब तक 15 चुनावों में से 13 बार यह सीट इन्हीं परिवारों के कब्जे में रही है। यह दोनों परिवार बारी-बारी से जीत दर्ज करते रहे हैं, जो इस सीट की राजनीतिक कहानी को और भी रोचक बनाता है।
इतिहास के पन्नों से
1962 में पहली बार चुनाव हुआ, जब यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थी। तब सोशलिस्ट पार्टी के लखन मुर्मू जीते थे। 1967 और 1969 में श्रीकृष्ण सिंह ने लगातार जीत हासिल की। 1972 में कांग्रेस के चंद्रशेखर सिंह ने जीत कर इस सिलसिले को तोड़ा। 1977 में फाल्गुनी प्रसाद यादव ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में केवल 95 वोट के अंतर से जीत दर्ज की, और फिर 1980 में बीजेपी से जीत हासिल की।
‘नो रिपीट’ की अनोखी परंपरा
1985 के बाद से इस सीट पर कोई भी विधायक दो बार लगातार जीत नहीं पाया है। श्रीकृष्ण सिंह और फाल्गुनी यादव परिवारों ने इस नियम को बनाए रखा है। 1985 में नरेंद्र सिंह (श्रीकृष्ण सिंह के परिवार से) ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। 1995 में फाल्गुनी यादव ने उन्हें हराया। 2005 में दो बार चुनाव हुए, फरवरी में नरेंद्र सिंह के बेटे अभय सिंह जीते, लेकिन अक्टूबर में फाल्गुनी यादव ने पुनः जीत हासिल की।
नई पीढ़ी और महिलाओं का कदम
2010 में तीसरी पीढ़ी से सुमित कुमार सिंह ने झामुमो के टिकट पर चुनाव जीता। 2015 में यादव परिवार की बहू सावित्री देवी ने राजद से जीत दर्ज की और चकाई की पहली महिला विधायक बनीं। लेकिन 2020 में यह बदलाव फिर हुआ जब सुमित कुमार सिंह ने सावित्री देवी को महज 581 वोट के अंतर से हराकर जीत हासिल की।