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छठ पूजा, सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था और विश्वास का महापर्व है। खासतौर पर उन लोगों के लिए जिनकी गोद सूनी है, यह व्रत एक वरदान की तरह माना जाता है। मान्यता है कि जो भी महिला या पुरुष पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ इस व्रत को करते हैं, छठी मइया और सूर्य देव उनकी मनोकामना जरूर पूरी करते हैं।

संतान सुख के लिए क्यों खास है छठ व्रत?

छठ पूजा का सबसे बड़ा महत्व संतान की प्राप्ति और उसकी लंबी उम्र की कामना से जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठी मइया को भगवान सूर्य की बहन और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। इसलिए, जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित हैं, वे इस व्रत को बड़ी उम्मीद से करते हैं। ऐसी मान्यता है कि छठ मइया का व्रत रखने से न सिर्फ सूनी गोद भर जाती है, बल्कि संतान को अच्छा स्वास्थ्य और लंबी आयु का आशीर्वाद भी मिलता है।

पूजा की शुरुआत: नहाय-खाय: छठ पूजा की शुरुआत 'नहाय-खाय' से होती है। इस दिन व्रती (व्रत रखने वाले) सुबह किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं और फिर सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। आमतौर पर इस दिन कद्दू (लौकी) की सब्जी और चने की दाल के साथ चावल खाया जाता है। इस दिन से ही घर में शुद्धता का खास ध्यान रखा जाता है।

सूर्य अर्घ्य की विधि: छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। पहले दिन डूबते हुए सूर्य को और फिर अगले दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती पानी में खड़े होकर, बांस की टोकरी (दउरा) में फल, ठेकुआ और पूजा की अन्य सामग्री रखकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। यह दृश्य मन को शांति और भक्ति से भर देता है। माना जाता है कि सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में ऊर्जा आती है और सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

अगर आप भी संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, तो इस छठ पर पूरे विश्वास और श्रद्धा के साथ छठी मइया का व्रत जरूर करें। कहते हैं कि मां की चौखट से कोई खाली हाथ नहीं लौटता।