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Up Kiran, Digital Desk: वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम द्वारा सरकार के उन दावों पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठाने के बाद, जो पहलगाम आतंकी घटना को पाकिस्तान से जोड़ते हैं, राष्ट्रीय विमर्श में एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री की टिप्पणियों ने सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच तीखी बहस छेड़ दी है, जिसमें कई हलकों से 'राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर' करने के आरोप लगाए जा रहे हैं।

चिदंबरम का सवाल: 'सबूत कहाँ हैं'?

यह विवादास्पद बयान चिदंबरम के 'द क्विंट' के साथ एक साक्षात्कार के दौरान सामने आया, जहाँ उन्होंने अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत उन साक्ष्यों को चुनौती दी, जो 22 अप्रैल के हमले को पाकिस्तानी तत्वों से जोड़ते हैं। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुए इस हमले में 26 लोगों की जान गई थी, जिनमें कई नागरिक शामिल थे। यह घटना भारत के आतंकवाद विरोधी दृष्टिकोण और खुफिया क्षमताओं को लेकर राजनीतिक बहस का केंद्र बन गई है।

अपने विवादास्पद बयानों में, चिदंबरम ने सवाल उठाया कि क्या जांचकर्ताओं ने अपराधियों की पहचान सफलतापूर्वक की है या उनके उत्पत्ति का पता लगाया है। उन्होंने इस संभावना का सुझाव दिया कि हमलावर विदेशी ऑपरेटिव के बजाय घरेलू स्तर पर कट्टरपंथी (domestically radicalized) व्यक्ति हो सकते थे। उनकी टिप्पणियों ने विशेष रूप से पाकिस्तानी संलिप्तता की स्वचालित धारणा को चुनौती दी, क्योंकि उन्होंने ऐसे निष्कर्षों का समर्थन करने के लिए अपर्याप्त साक्ष्य होने का उल्लेख किया।

चिदंबरम का बचाव: 'गलत सूचना अभियान' का आरोप

अनुभवी राजनेता ने तब से "गलत सूचना अभियान" के रूप में वर्णित की गई चीजों का जोरदार जवाब दिया है, जिसे उनके वास्तविक रुख को विकृत करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर लिखते हुए, चिदंबरम ने आलोचकों पर जानबूझकर उनके साक्षात्कार में हेरफेर करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उनके बयानों के चुनिंदा हिस्सों को संपादित किया गया और महत्वपूर्ण संदर्भों को हटा दिया गया जो उनके इच्छित अर्थ को स्पष्ट करते।

चिदंबरम के बचाव का मुख्य केंद्र उनके आलोचकों द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली पर था। उन्होंने इसे भ्रामक रणनीति बताते हुए कहा कि पूर्ण रिकॉर्ड किए गए साक्षात्कार को दबा दिया गया, जबकि अलग-अलग वाक्यों को निकाला गया और विशिष्ट शब्दों को म्यूट करके भ्रामक छाप छोड़ी गई। उन्होंने ऐसे व्यवहार को समकालीन राजनीतिक विमर्श में सूचना में हेरफेर का सबसे हानिकारक रूप बताया।

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