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Up Kiran, Digital Desk: कहावत है "जब कोई अपनी ताकत से बाहर निकलता है तो उसकी असलियत सामने आ ही जाती है।" अब इस कहावत को बजरमुंड़ा मुआवजा घोटाले में सटीक रूप से देखा जा सकता है। एक घोटाला जो 100 करोड़ रुपये के मुआवजे की जगह 415 करोड़ रुपये के भुगतान का खुलासा करता है। यह मामला उस समय और भी ज्यादा गंभीर हो जाता है जब इसे सरकारी लापरवाही और भ्रष्टाचार का संगठित रूप सामने लाने वाला माना जा रहा है।
इस घोटाले में राज्य सरकार ने तत्कालीन SDM अशोक कुमार मारबल को निलंबित कर दिया है जबकि अब इस पूरे मामले की जांच आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) को सौंप दी गई है। क्या यह केवल एक गलती थी या फिर यह किसी बड़े जालसाजी का हिस्सा था? आइए जानते हैं इस मामले की पूरी सच्चाई।
मुआवजे में अनोखी हेराफेरी: 100 करोड़ की जगह 415 करोड़ का भुगतान
बजरमुंड़ा मुआवजा घोटाले ने प्रशासन की कार्यप्रणाली और वित्तीय प्रबंधन पर सवाल खड़ा किया है। जहां एक ओर सरकार ने 100 करोड़ रुपये के मुआवजे की योजना बनाई थी वहीं कथित रूप से 415 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। यह न केवल एक वित्तीय गड़बड़ी है बल्कि यह भी दर्शाता है कि किसी ने या कुछ लोगों ने इस बड़ी राशि का गलत तरीके से वितरण किया।
जांच में सामने आई 'गंभीर लापरवाही'
छत्तीसगढ़ सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्कालीन SDM अशोक कुमार मारबल को निलंबित कर दिया है। उनका निलंबन आदेश सामान्य प्रशासन के अवर सचिव द्वारा जारी किया गया था। आदेश में साफ तौर पर लिखा गया है कि मारबल ने "गंभीर लापरवाही" दिखाई जिसके कारण इस घोटाले का जन्म हुआ।
मारबल को निलंबन के दौरान रायपुर आयुक्त कार्यालय से अटैच कर दिया गया है। यह कदम न केवल घोटाले की गंभीरता को दिखाता है बल्कि प्रशासनिक जिम्मेदारी की भी पोल खोलता है।
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