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Up Kiran, Digital Desk: संसद के गलियारों में अक्सर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच नोक-झोंक चलती रहती है, लेकिन इस बार कांग्रेस ने सीधा राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस ने उन पर न सिर्फ 100 दिनों तक "पूरी तरह से चुप" रहने का आरोप लगाया है, बल्कि एक ऐसी परंपरा तोड़ने का भी इल्जाम लगाया है, जिसे सुनकर हर कोई हैरान है।

मामला जुड़ा है राज्यसभा से रिटायर हो रहे सांसदों के सम्मान से।

क्या है पूरा मामला: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने सभापति धनखड़ पर हमला बोलते हुए कहा, "यह बहुत ही अजीब और अभूतपूर्व (unprecedented) है। राज्यसभा के सभापति पिछले 100 दिनों से सार्वजनिक जीवन से पूरी तरह से गायब हैं और चुप हैं।"

लेकिन कांग्रेस की असली नाराजगी की वजह कुछ और ही है। जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि सभापति ने राज्यसभा की एक बहुत पुरानी और सम्मानित परंपरा को तोड़ दिया । उन्होंने कहा, "सदन से रिटायर हो रहे सांसदों को विदाई देने के लिए इस बार कोई कार्यक्रम ही नहीं रखा गया। यह उन सांसदों का अपमान है, जिन्होंने सालों तक देश की सेवा की है।"

मनमोहन सिंह जैसे दिग्गजों का भी नहीं हुआ सम्मान?

कांग्रेस का कहना है कि इस बार जो सांसद रिटायर हुए हैं, उनमें पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जैसे दिग्गज नेता भी शामिल थे। परंपरा के अनुसार, रिटायर हो रहे सभी सदस्यों के लिए सदन में एक विदाई समारोह होता है, जिसमें प्रधानमंत्री समेत सभी पार्टियों के नेता उनके योगदान को याद करते हुए भाषण देते हैं। यह एक भावुक और सम्मानजनक पल होता है।

लेकिन कांग्रेस के मुताबिक, इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

जयराम रमेश ने इस पर गहरी निराशा जताते हुए कहा कि सभापति का यह कदम उनकी कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। उनका कहना है कि सभापति पूरे सदन के संरक्षक होते हैं, न कि सिर्फ सरकार के। उनका काम सदन की गरिमा और परंपराओं को बनाए रखना है, लेकिन उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभाई।

यह पहली बार है जब किसी विपक्षी दल ने राज्यसभा के सभापति पर इस तरह से सीधे-सीधे परंपरा तोड़ने और सांसदों का अपमान करने का आरोप लगाया है। इस घटना ने दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में एक नई बहस छेड़ दी है कि क्या संवैधानिक पदों पर बैठे लोग अब राजनीतिक दबाव में परंपराओं को भी ताक पर रख रहे हैं?