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महाराष्ट्र की सियासत में सबसे अहम मुद्दा मराठा आरक्षण है, जिसको विवाद एक बार फिर से खड़ा हो गया है। समाज सेवक मनोज ने भूख हड़ताल शुरू की तो पुणे से लेकर लातूर और बीड़ से लेकर प्रदेश के अन्य इलाकों में भी आंदोलन होने लगे हैं।

बीते कल को कई जगहों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें भी हुई। तो वहीं महाराष्ट्र के एक भाजपा विधायक ने इस्तीफा दे दिया है। वहीं सीएम एकनाथ शिंदे के दो करीबी सांसदों ने भी मराठा आरक्षण का समर्थन किया है। इस कड़ी में सूचना है कि महाराष्ट्र की शिंदे सरकार भी मराठा आरक्षण के मुद्दे को अपने पक्ष में करने की तैयारियां कर रही है।

बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र में मराठाओं की जनसंख्या 33% है और वे ज्यादातर मराठी भाषा बोलते हैं। पर ये जरूरी नहीं है कि जो मराठी बोलता है वही मराठा है।

क्या है प्रदर्शाकरियों की मांग

मराठा आंदोलन की सबसे बड़ी मांग ये है कि मराठाओं को ओबीसी का दर्जा दिया जाए। दावा है कि सन् 1948 तक निजाम का हुकूमत खत्म होने तक मराठाओं को कुनबी ही माना जाता था और वे ओबीसी थे, इसलिए उन्हें ओबीसी की कटेगरी में कर दिया जाना चाहिए। विरोध प्रदर्शन कर रहे मनोज राजे की भी यही मांग है कि जब तक मराठा कुनबी को ओबीसी का प्रमाण पत्र नहीं दिया जाता है, तब तक ये आंदोलन चलता रहेगा। 

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