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राजस्थान के उदयपुर में 2022 में हुई दर्जी कन्हैया लाल तेली की निर्मम हत्या पर आधारित फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि किस प्रकार एक सोशल मीडिया पोस्ट के कारण कन्हैया लाल की दुकान में घुसकर सिर कलम कर दिया गया था।

हाल ही में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस फिल्म की रिलीज पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि फिल्म समाज में नफरत और ध्रुवीकरण को बढ़ा सकती है। इसको लेकर उन्होंने अदालत में याचिका दाखिल की है जिसमें फिल्म की स्क्रीनिंग पर रोक लगाने की मांग की गई है।

हालांकि फिल्म निर्माताओं का कहना है कि यह फिल्म किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह एक वास्तविक घटना पर आधारित डॉक्युड्रामा है, जिसे देश को सच्चाई से रूबरू कराने के उद्देश्य से बनाया गया है। उनके मुताबिक, ये केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग है और इसे दबाने की कोशिश एकतरफा सोच को दर्शाता है।

सवाल उठ रहा है कि यदि फिल्म में वही दिखाया गया है जो न्यायिक और पुलिस रिकॉर्ड में पहले ही सार्वजनिक हो चुका है, तो फिर किसे इस सच्चाई से डर है?

विशेषज्ञों का मानना है कि जब-जब इस तरह की फिल्में सामने आती हैं, तब एक खास तबका उन्हें रोकने का प्रयास करता है, जबकि वही तबका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करता रहा है।

फिल्म को सेंसर बोर्ड से प्रमाणन मिल चुका है, लेकिन अब यह देखना दिलचस्प होगा कि न्यायालय इस पर क्या फैसला देता है और क्या जनता तक यह फिल्म बिना रोक के पहुँच पाएगी।
 

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