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Up Kiran, Digital Desk: पौड़ी गढ़वाल की सुरम्य वादियों में स्थित यमकेश्वर का वह वनंतरा रिजॉर्ट जहां कभी पर्यटकों की चहचहाहट गूंजती थी अब हमेशा के लिए एक खामोश चीख की याद बन गया है। वहीं काम करती थी 19 वर्षीय अंकिता भंडारी एक सीधी-सादी स्वप्नों से भरी युवती जो जिंदगी की शुरुआत में ही नफरत और हैवानियत की भेंट चढ़ गई।
शुक्रवार को कोटद्वार की अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में जैसे ही फैसला सुनाया गया कक्ष में एक सन्नाटा पसर गया फैसला था पुलकित आर्य समेत तीनों आरोपी दोषी करार।
यह महज एक कानूनी निर्णय नहीं था बल्कि उन्हीं पहाड़ों की गूंज थी जहां कभी अंकिता की हँसी बसी थी और फिर चीखें दम तोड़ गई थीं।
हत्या, नदी और न्याय की यात्रा
18 सितंबर 2022 की वह रात जब अंधेरे ने इंसानियत को ढँक दिया। अंकिता जो वनंतरा रिज़ॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट के पद पर कार्यरत थी अपने वरिष्ठ पुलकित आर्य के साथ विवाद में उलझ गई थी। वह विवाद जो मामूली शब्दों से शुरू हुआ क्रूरता और सत्ता के दंभ में डूबकर हत्या में बदल गया।
एसआईटी की ओर से दायर की गई 500 पन्नों की चार्जशीट में दर्ज है कि पुलकित ने अपने दो कर्मचारियों सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता के साथ मिलकर अंकिता को पहले प्रताड़ित किया और फिर ऋषिकेश की चीला नहर में धक्का देकर उसे मौत के हवाले कर दिया। उस शांत दिखती नहर ने एक दर्दनाक सच्चाई को अपने भीतर समेट लिया जब तक कि शव बाहर नहीं निकला।
गवाहियों और गुहार का लंबा संघर्ष
इस मामले की सुनवाई दो साल आठ महीने तक चली और इस दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से कुल 47 गवाह पेश किए गए हर गवाही जैसे इंसाफ की एक ईंट रख रही हो। चार्जशीट में 97 नामित गवाह थे जिनमें से चुनिंदा लोगों की गवाही ने इस केस की रीढ़ बनाई। हर बयान, हर दस्तावेज़, हर सबूत जैसे एक-एक कतरा अंकिता के लिए न्याय की मांग कर रहा हो।
जब जनता सड़कों पर उतरी
जब चीला नहर से अंकिता का शव बरामद हुआ गांव और शहर में सन्नाटा टूट गया। लोगों का आक्रोश सड़कों पर फूट पड़ा मोमबत्तियों की रैलियां इंसाफ की पुकार और सिस्टम से सवाल।
लोगों का गुस्सा सिर्फ एक लड़की की मौत पर नहीं था बल्कि उस सत्ता के अहंकार पर था जिसने सोचा कि पैसे राजनीतिक रसूख और डर के दम पर हर जुर्म दबाया जा सकता है।
पुलकित आर्य भाजपा नेता विनोद आर्य का पुत्र था। लेकिन जब मामला उजागर हुआ पार्टी ने उसे तत्काल बाहर का रास्ता दिखाया। राज्य सरकार को जनता के गुस्से को शांत करने के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित करनी पड़ी और यह वादा भी करना पड़ा कि अपराधियों को सख्त से सख्त सजा मिलेगी।
अंकिता जो अब भी बोलती है हर चुप लड़की की आवाज़ बनकर
वह बस 19 साल की थी। उसकी आंखों में पहाड़ों जैसा विस्तार था और मुस्कान में भरोसे जैसा उजाला। वह कोई नेता नहीं थी कोई नामी चेहरा नहीं थी पर उसकी मौत ने देश को झकझोर दिया।
आज जब कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया तो वह सिर्फ एक कानूनी प्रक्रिया नहीं थी। वह हर लड़की के लिए एक संदेश था कि देर भले हो पर इंसाफ अब भी ज़िंदा है।
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