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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियाँ जोरों पर हैं और इस बार की राजनीति में न केवल बड़ी पार्टियाँ, बल्कि छोटी पार्टियाँ भी अपनी सक्रियता बढ़ा रही हैं। इन चुनावों के करीब आते ही राजनीतिक समीकरण बदलने लगे हैं और नए एलायंस बन रहे हैं। इसी बीच, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने अपनी रणनीति के तहत एक बड़ा ऐलान किया है, जो सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गया है।
60 सीटों पर वीआईपी का दावा
विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी ने सोमवार को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर घोषणा की कि उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में 60 सीटों पर अपनी किस्मत आज़माएगी। इसके अलावा, बाकी सीटों पर उनके सहयोगी दल चुनाव लड़ेंगे। सहनी ने इसे पार्टी का पहला एजेंडा बताते हुए यह भी कहा कि यह उनकी पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो बिहार की राजनीति में नया मोड़ ला सकता है।
महागठबंधन के लिए नए सवाल
मुकेश सहनी की इस घोषणा ने महागठबंधन में नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। हाल ही में, वीआईपी ने इंडिया गठबंधन के साथ हाथ मिलाया था, और अब यह घोषणा महागठबंधन के अन्य दलों के लिए चिंताएँ बढ़ा रही है। वीआईपी के इस कदम से महागठबंधन के अंदर चुनावी रणनीतियों पर सवाल उठने लगे हैं। सहनी, जो 'सन ऑफ मल्लाह' के नाम से भी लोकप्रिय हैं, की इस ताज़ा घोषणा ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।
तेजस्वी यादव के साथ जाने की बात
हालाँकि, मुकेश सहनी ने इससे पहले यह भी कहा था कि वे नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ चुनावी निर्णय में उनका अनुसरण करेंगे। सहनी का कहना था कि तेजस्वी यादव बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष हैं और वे जो भी निर्णय लेंगे, वीआईपी उनका साथ देगी। इसके साथ ही, सहनी ने यह भी कहा था कि चुनाव आयोग को चुनावों में निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखने की ज़रूरत है, ताकि लोकतंत्र का महापर्व सही तरीके से सम्पन्न हो सके।
लोकतंत्र पर सवाल उठाते हुए सहनी का बयान
वीआईपी प्रमुख ने चुनाव आयोग के पक्षपातपूर्ण व्यवहार को लेकर भी चिंता जताई थी। उनका कहना था कि अगर चुनाव आयोग ने किसी विशेष पार्टी के पक्ष में पक्षपाती रुख अपनाया, तो यह लोकतंत्र के लिए घातक हो सकता है। सहनी ने इस पर जोर देते हुए कहा कि अगर चुनाव आयोग निष्पक्ष तरीके से काम नहीं करता, तो बेहतर होगा कि देश में चुनाव ही न हो।
किस दिशा में जा रहे हैं बिहार के चुनाव?
यह मामला केवल चुनावी घोषणा से कहीं अधिक है। यह पूरी राजनीतिक व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया पर भी सवाल उठाता है। एक ओर जहां वीआईपी अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी ओर महागठबंधन को नए राजनीतिक दबावों का सामना करना पड़ रहा है। आगामी विधानसभा चुनावों के नतीजे बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकते हैं, और यह देखने की बात होगी कि कौन सी पार्टी या गठबंधन जनता का भरोसा जीत पाती है।
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