
Up Kiran, Digital Desk: पत्रकारिता का पेशा जहां दुनिया को सच से जोड़ता है, वहीं युद्ध क्षेत्रों में यह पेशा एक जंग जैसा बन जाता है—एक ऐसी जंग जहां हर सच एक खतरा है। कुछ ऐसा ही हुआ यूक्रेनी पत्रकार विक्टोरिया रोशचिना के साथ, जिनकी दुखद और हैरान कर देने वाली मौत न केवल पत्रकारिता जगत के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक करारी चोट है।
27 साल की विक्टोरिया, रूस के कब्जे वाले इलाकों में गुप्त हिरासत केंद्रों, अत्याचारों और नागरिक अधिकारों के हनन की रिपोर्टिंग कर रही थीं। उनका उद्देश्य था—दुनिया को उस अंधेरे से रूबरू कराना जिसे रूसी प्रशासन छिपाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन, वो सच्चाई की तलाश में इतनी दूर चली गईं कि लौट न सकीं।
अगस्त 2023 में हुई गिरफ्तारी: जब पत्रकार बनी 'खतरा'
अगस्त 2023 में विक्टोरिया रोशचिना रिपोर्टिंग के लिए एनरहोदर गई थीं—एक ऐसा इलाका जो उस समय रूस के कब्जे में था। यह जगह संवेदनशील थी, और रूस यहां पत्रकारों की मौजूदगी को सहन नहीं कर रहा था। जैसे ही विक्टोरिया वहां पहुंचीं, उन्हें रूसी बलों ने हिरासत में ले लिया।
इसके बाद उन्हें मेलिटोपोल और फिर टैगानरोग डिटेंशन सेंटर में भेजा गया—एक ऐसा केंद्र जो अपनी क्रूरता और अवैध हिरासत के लिए कुख्यात है। वहां न तो उन्हें कानूनी सहायता मिली और न ही कोई अधिकार। उन्हें दुनिया से काट दिया गया और महीनों तक उनकी कोई खबर नहीं मिली।
डिटेंशन सेंटर में 8 महीने की यातना: बर्बरता की हदें पार
द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, विक्टोरिया को लगभग आठ महीने तक बिना किसी आरोप के रखा गया। लेकिन यह कैद सिर्फ शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक और मानवीय हनन का पर्याय बन गई।
वहां उन्हें:
बिजली के झटके दिए गए
हड्डियां तोड़ी गईं
भूखा और प्यासा रखा गया
नशीले पदार्थों से बेहोश किया गया
मानवाधिकारों का हर स्तर पर उल्लंघन किया गया
सबसे दर्दनाक बात यह है कि सितंबर 2024 में उनकी हालत इतनी बिगड़ गई कि मौत हो गई। पर मौत भी उन्हें नहीं बख्शी गई—उनका शव अनाम पुरुष के रूप में चिह्नित कर दिया गया ताकि पहचान छुपाई जा सके।
शव की हालत: आंखें और मस्तिष्क गायब, यातना की क्रूरता उजागर
फरवरी 2025 में जब युद्धबंदी के तहत कैदियों की अदला-बदली हुई, तब विक्टोरिया का शव यूक्रेन को सौंपा गया। शव को एक अज्ञात पुरुष के रूप में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन डीएनए परीक्षण के बाद उसकी पहचान हुई।
फॉरेंसिक रिपोर्ट में जो सामने आया, वह किसी भी इंसान को झकझोर देने के लिए काफी है:
शरीर से आंखें और मस्तिष्क निकाल दिया गया था
जलने के निशान, टूटी हुई पसलियां और कुपोषण के साफ संकेत
स्पष्ट संकेत कि मौत से पहले अत्यधिक यातना दी गई थी
यह सब संभवतः सबूत छिपाने और पहचान मिटाने के लिए किया गया था। यह केवल हत्या नहीं, बल्कि एक पूर्व नियोजित युद्ध अपराध था।
विक्टोरिया: एक निडर आवाज, जो अब सदा के लिए खामोश हो गई
विक्टोरिया रोशचिना केवल एक पत्रकार नहीं थीं—वो यूक्रेन की उन गिनी-चुनी साहसी पत्रकारों में से एक थीं, जो रूसी कब्जे वाले क्षेत्रों में जाकर सच्चाई की पड़ताल कर रही थीं। उनकी रिपोर्टिंग सत्ता की आंखों में आंखें डालकर सच कहती थी, और शायद यही उनकी सबसे बड़ी 'गलती' बन गई।
उनका मिशन था:
गुप्त हिरासत केंद्रों का पर्दाफाश करना
नागरिकों पर हो रहे अत्याचारों की जानकारी दुनिया तक पहुंचाना
युद्ध में आवाज़हीन बने लोगों को एक आवाज़ देना
लेकिन इसी मिशन के चलते वो खुद उस बर्बरता का शिकार हो गईं, जिसे वे उजागर करना चाहती थीं।
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