
Up Kiran, Digital Desk: पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों और दुर्व्यवहार को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अब तक का सबसे सख्त और इनोवेटिव कदम उठाने का मन बना लिया है। कोर्ट ने कहा है कि वह देश के किसी प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान (जैसे IIT) की मदद लेकर एक ऐसा 'रियल-टाइम' सिस्टम बनाने पर विचार कर रहा है, जो पुलिस स्टेशनों के CCTV फुटेज की निगरानी बिना किसी इंसानी दखल के करेगा।
सीधा मतलब यह है कि अगर किसी भी थाने में कोई कैमरा बंद होता है, तो सिस्टम अपने आप एक अलर्ट जारी कर देगा।
क्यों पड़ी इस 'डिजिटल पहरे' की ज़रूरत
सुप्रीम कोर्ट देशभर के पुलिस थानों में CCTV कैमरों के काम न करने के मामले पर खुद संज्ञान (suo motu) लेकर सुनवाई कर रहा है। यह मामला तब और गंभीर हो गया जब कोर्ट के सामने एक मीडिया रिपोर्ट आई, जिसमें बताया गया था कि सिर्फ राजस्थान में ही 2025 के पहले 8 महीनों में 11 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हो चुकी है।
सुनवाई के दौरान, कोर्ट की मदद कर रहे वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे ने बताया कि कई राज्यों और यहाँ तक कि CBI, ED और NIA जैसी केंद्रीय एजेंसियों ने भी CCTV लगाने के आदेशों का पूरी तरह से पालन नहीं किया है।
कैमरा लगाना काफी नहीं, उसका चलना ज़रूरी है"
इस पर जस्टिस संदीप मेहता ने बहुत ही अहम टिप्पणी की। उन्होंने कहा, "असली मुद्दा सिर्फ कैमरा लगाना (compliance) नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि वे हमेशा चालू रहें (oversight)। आज आप हलफनामा दे देंगे कि कैमरा लग गया, कल कोई अफसर उसे बंद कर देगा। हम एक ऐसे कंट्रोल रूम के बारे में सोच रहे हैं, जिसमें कोई इंसानी दखल न हो। अगर कोई कैमरा बंद होता है, तो सिस्टम को अपने आप एक 'फ्लैग' (अलर्ट) जारी करना चाहिए।"
पुलिस के बहाने अब नहीं चलेंगे
रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि पुलिस अक्सर फुटेज देने से बचने के लिए 'तकनीकी खराबी', 'स्टोरेज की कमी' या 'जांच जारी होने' जैसे बहाने बनाती है। कई बार तो थानों के रिमांड रूम जानबूझकर कैमरों की रेंज से बाहर रखे जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस नए विचार का मकसद पुलिस की इसी तरह की चालाकी और बहानों पर हमेशा के लिए रोक लगाना है।
पहले के आदेशों का क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट पहले ही यह आदेश दे चुका है कि थानों का कोई भी कोना CCTV की निगरानी से बाहर नहीं होना चाहिए और फुटेज को कम से '18 महीने' तक सुरक्षित रखा जाना चाहिए। कोर्ट ने 2023 में सभी राज्यों और केंद्र को इसे लागू करने का "आखिरी मौका" भी दिया था और थाने के SHO को व्यक्तिगत रूप से इसके रखरखाव के लिए जिम्मेदार बनाया था।
अदालत ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है और अगले हफ्ते इस पर अपना आदेश सुनाएगी। यह फैसला भारत में पुलिसिंग में पारदर्शिता लाने और मानवाधिकारों की रक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है।