
Up Kiran, Digital Desk: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई ने देश में चल रहे 'बुलडोजर कल्चर' पर एक बेहद सख्त और सीधी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि किसी भी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी व्यक्ति के घर को गिरा देना "कानून के शासन (Rule of Law)" का घोर उल्लंघन है।
चीफ जस्टिस ने यह बड़ी बात मॉरीशस में आयोजित एक कार्यक्रम में कही, जिसमें मॉरीशस के चीफ जस्टिस भी मौजूद थे। यह पहली बार है जब भारत के सर्वोच्च पद पर बैठे किसी न्यायाधीश ने 'बुलडोजर एक्शन' पर इतनी स्पष्ट और कड़ी नाराजगी जाहिर की है।
क्या कहा चीफ जस्टिस गवई ने: CJI गवई ने जोर देकर कहा कि भारत का संविधान हर व्यक्ति को कानून के तहत बराबरी और सुरक्षा की गारंटी देता है। उन्होंने कहा, "जब आप किसी कानूनी प्रक्रिया के बिना किसी का घर गिरा देते हैं, तो यह सीधे तौर पर कानून के शासन का उल्लंघन होता है।" उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि ऐसी कार्रवाइयां न्यायिक सिद्धांतों के खिलाफ हैं, जहां किसी भी कार्रवाई से पहले पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना अनिवार्य है।
क्या होता है ‘बुलडोजर एक्शन: बुलडोजर न्याय' या 'बुलडोजर राज' शब्द का इस्तेमाल तब किया जाता है, जब किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति की संपत्तियों को सरकारी अधिकारियों द्वारा अवैध बताकर गिरा दिया जाता है। अक्सर यह कार्रवाई अपराध होने के फौरन बाद की जाती है, जिसे कुछ लोग 'त्वरित न्याय' के रूप में देखते हैं। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह एक तरह की सजा है जो बिना अदालत में दोष साबित हुए ही दे दी जाती है और यह कानून के शासन के खिलाफ है।
चीफ जस्टिस की टिप्पणी के क्या हैं मायने?
न्यायपालिका का कड़ा संदेश: CJI की यह टिप्पणी देश की कानून-व्यवस्था और सरकारी एजेंसियों के लिए एक सीधा और कड़ा संदेश है।
कानून के शासन पर जोर: उन्होंने याद दिलाया है कि किसी भी परिस्थिति में कानून के शासन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
नागरिक अधिकारों की रक्षा: यह बयान उन लोगों के लिए एक उम्मीद की किरण है जो ऐसी कार्रवाइयों को अपने मौलिक अधिकारों का हनन मानते हैं।
चीफ जस्टिस का यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश के कई राज्यों में बुलडोजर कार्रवाई को लेकर लगातार बहस छिड़ी हुई है। अब देखना यह होगा कि न्यायपालिका के सर्वोच्च प्रमुख की इस टिप्पणी का ज़मीनी स्तर पर क्या असर होता है।